गुरुवार, 11 मई 2023

वाक पर भाले हैं! ● [ सजल ]

 192/2023

 

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

●समांत  :  आले

●पदांत: हैं।

●मात्राभार : 22.

मात्रा पतन : शून्य।

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

●शब्दकार ©

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

बिगड़ा  हुआ  समाज,हृदय के  काले  हैं।

गिरे न क्यों सिर गाज,वाक पर  भाले  हैं।।


गले न  झाँकें  आप,देखते दोष    उधर,

चढ़ा   रहे  तन  ताप,  जीभ में छाले  हैं।


करते  हैं   अपराध,  उन्हें स्वीकार  नहीं,

चलते  पाँव  अबाध, पाप  ने ढाले    हैं।


होता जन- संहार,मजहबी शान   दिखा,

आस्तीन  में   नाग ,  सपोले पाले     हैं।


मानव   का   आहार ,आदमी आज  बना,

छाया  बुद्धि - विकार, ज्ञान पर   ताले  हैं।


फूल न   खिलते  बाग ,  धतूरे के  जंगल,

लगी   देश  में  आग,  मनुज मतवाले  हैं।


'शुभम्' नहीं  विश्वास,घात के बीज  उगे,

कैसे लें  नर श्वास,  प्राण के लाले    हैं।


08.05.2023◆11.45आ.मा .



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...