गुरुवार, 11 मई 2023

पहले [ कुंडलिया ]

 188/2023

               

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● शब्दकार ©

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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                        -1-

पहले  जैसे अब नहीं,उपकारी अब    लोग।

स्वार्थ लीन अधिकांश हैं,चाहत अपना भोग।

चाहत  अपना  भोग,लूट कर भरें   तिजोरी।

करके  लूट  खसोट , भरें  नेता  धन - बोरी।। 

'शुभम्' एक से एक,सभी नहले  पर   दहले।

नैतिकता   का लोप ,नहीं था इतना   पहले।।


                        -2-

पहले मन फिर देह है,साधन तन को  जान।

साध्य सिद्ध मन से सदा,होता नर   अज्ञान।।

होता   नर  अज्ञान, यंत्र  से मंत्र   बड़ा    है।

भीतर तंत्र महान, निम्न से उच्च  खड़ा  है।।

'शुभम्'साध्य का ज्ञान,हृदय में मानव गह ले।

दस अश्वों को हाँक,बाग कस कर में पहले।।


                        -3-

पहले  सजती  गाँव  में,   सतरंगी   चौपाल।

करते थे मन मोद जन,क्रीड़ा कलित धमाल।

क्रीड़ा  कलित  धमाल,गल्प के   दौड़ें  चीते।

नौटंकी  की     धूम,  रात आँखों  में   बीते।।

'शुभम्' धैर्य के धाम ,बात कड़वी भी सह ले।

बड़े  हृदय   के लोग, गाँव  में होते    पहले।।


                        -4-

पहले  आती    गाँव  में,कन्या की    बारात।

गातीं  गाली    नारियाँ,   करें चुटीली  बात।।

करें   चुटीली  बात, गईं  सब अब  वे   बातें।

रहे न वे   अब लोग,नाक पर पड़तीं   लातें।।

'शुभं'हुआ सच आज,कौन सुनकर यों सह ले

गाली   की   सौगात,नहीं जैसी  थी   पहले।।


                        -5-

पहले  उर   में   प्रेम   था,मात्र प्रदर्शन   शेष।

अब  तो कोरा  ढोंग  है, नर रेवड़ की  मेष।।

नर  रेवड़  की मेष,जलन का खेल   पसारा।

मन  में भीषण  द्वेष,जनक संतति से हारा।।

'शुभम्'चूस धन आज,चाहता महल दुमहले।

बंधु - बंधु का  शत्रु,विभीषण था क्या पहले?


●शुभमस्तु !


05.05.2023◆1.00प०मा०

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