शुक्रवार, 12 मई 2023

लिखें ऐसा ● [अतुकान्तिका ]

 199/2023

    

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●शब्दकार©

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्' 

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लिखें ऐसा

बना दे

आपकी एक

पृथक छवि ,

कहने लगें

प्रबुद्ध

होना चाहिए

ऐसा ही कवि।


न स्वयं समझे

न कोई जाने,

शब्दाडंबर के

बिछा दे

ऐसे ताने -बाने,

कि न मिले ओर

न पाए कोई छोर!

कहते रहें

'सरोता': "वंश मोर-

वंश मोर",

ऐसे ही काव्य को

कहते हैं,

कविता घोर।


पाठकों को

बैठना पड़े

खोल कर कोश,

पढ़कर रचना

खो ही बैठें

निज होश,

और कुछ

गूगल बाबा से

प्रार्थना करते दिखें

पुरजोश।


करते रहें

जो वाहवाही,

बस कविता

उन्हीं की 

समझ में आई!

गूँगा जाने 

या उसके घर वाले,

जिसके 

हाथ में हो चाबी

वही खोले ताले।


अत्याधुनिक युग है,

चमत्कार जो 

दिखाना है,

दर्शकों, पाठकों,

 श्रोताओं की दृष्टि में

'महाकवि' कहलाना है,

तो काव्य भी

ऐसा रचाना है,

कि किसी की 

समझ में 

नहीं आना है,

बस ऊधम 

मचाना है।


●शुभमस्तु !


12.05.2023◆6.30आ.मा.

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