218/2023
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● ●
व्यंग्यकार ©
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्
' ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
आज सुबह का अखबार देखा तो एक प्रमुख समाचार पर दृष्टिपात होते ही अकबर इलाहाबादी का यह शेर भीतर ही भीतर ऊधम मचाने और मन की कहन को बाहर लाने के लिए कुलबुलाने लगा।शेर कुछ यों है: 'हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम, वो कत्ल भी करते हैं तो शिकवा नहीं होता।' एक कहावत कुछ इस प्रकार भी कही और पढ़ी जाती है कि जंगल में कभी टेढ़े पेड़ नहीं सीधे पेड़ ही काटे जाते हैं।आज के सामाजिक ,राजनैतिक, नैतिक और धार्मिक परिवेश में यह सोलहों आने,चालीस शेरों औऱ पक्के एक सौ किलोग्रामों यह बात सही है।
देश औऱ समाज का कोई तथाकथित बड़ा नेता,अधिकारी, कर्मचारी,सर्वेसर्वा यदि कितनी भी बड़ी भूल या अपराध करता है, तो उसके लिए इस प्रजातंत्र में किसी दंड या सजा का प्राविधान नहीं है। न कोई पाप है। न देवता का शाप है। और न देश और समाज के लिए वह अभिशाप है! यह एक भयंकर विशुद्ध और परिपक्व विडम्बना ही है कि वह दूध का धुला बना रहकर साफ -साफ बच निकलता है।वही तो इस जंगल का टेढ़ा पेड़ है। उसके ऊपर कोई धारा,कोई दुधारा कारगर सिद्ध नहीं होता। 'समरथ को नहिं दोष गुसाईं।'ये पंक्ति गोसाईं तुलसीदास बहुत पहले ही लिख कर सुरक्षित ढाल बनाकर रख गए हैं। है किसी के माई के लाल में ताकत कि इन तथाकथित 'टेढ़े पेड़ों' को काटना तो बहुत दूर ,उन्हें छू भी नहीं सकता।
कौन नहीं जानता कि प्रत्येक टॉल टैक्स वसूली प्लाज़ा पर ऐसे 'बेचारों' की हरित पृष्ठभूमि पर दुग्ध धवल दीर्घ अक्षरों में एक नहीं कई स्थानों पर सूच्यांकित रहतीं हैं कि उनसे भूल से भी टॉल टैक्स वसूल न हो जाए।शेष सामान्य जन के कार, मोटर,ट्रक ,बस आदि हेतु रेट लिस्ट लगाना भी नहीं भूला जाता कि इनसे इतना- इतना वसूला जाना है। जब सड़क पर जाना है ,तो टेक्स भी देते ही जाना है। अनिवार्यतः चुकाना ही चुकाना है। जो देने के लिए सक्षम हैं उनसे एक पैसा भी नहीं पाना है।हो सकता है ऐसे ही 'बेचारे' 'महापुरुषों और महानारियों' के पूज्य पिताजी ने ही देश की सभी सड़कों का निर्माण कार्य कराया हो।उनके लिए न कोई कानून है न आचार संहिता।न नियम न उनका आचरण। सब कुछ मनमाना।
बराबर सीधे पेड़ ही काटे जा रहे हैं।टेढ़े अरराते हुए दौड़े चले जा रहे हैं। 'सीधे'अपनी सिधाई के कारण काटे जा रहे हैं। 'टेढ़े पेड़' कभी अपराध कर ही नहीं सकते। जो इन टेढ़ों को भी सीधा कर दें, उनसे कोई चूं - चपड़ नहीं चलती। वे 'महाटेढ़े 'उनके पालित - पोषित भी हो सकते हैं।जिनके संरक्षण में फलते -फूलते और ऊलते हैं। टेढ़ों द्वारा यदि किसी नियम आदि के संचालन, संपादन, क्रियान्वयन आदि में भूल हो जाती है तो नियम बदलकर सुधार कर लिया जाता है। वे अपनी गलती ,अपराध या भूल भी स्वीकार भी नहीं करते। यही तो उनकी महानता है। तभी तो मेरा देश महान है। और इन 'महापुरुषों' औऱ 'महानारियों' के कारण है। 'सीधे पेड़'क्या हैं?केवल घास- फूस ही। पैरों तले रौंदे जाने की चीज। जहाँ विधायक ही भंजक हो,वहाँ पलित तो पालक की घास-पात है।शह में भी मात है।'टेढ़े' और 'टेढ़ों' का पदाघात है।'जिसकी लाठी उसकी भैंस' की बात है। जंतु वर्ग में आदमी का आदमी के संग पक्षपात है। 'टेढ़ों' के समक्ष 'सीधों' की यही तो औकात है। कमजोरों के ऊपर तुषारापात है। पर क्या कीजिए ,'जबरा मारे और रोने भी न दे!' इसी कहावत की बिछी बिसात है।
●शुभमस्तु !
20.05.2023◆7.45प०मा०
●●●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें