233/2023
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●शब्दकार ©
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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बरसे काले मेघ , मास सावन आया।
छिपा जलद में वेघ,धरा खोले काया।।
चले पवन पुरजोर,सनन-सन- सन करता,
खोल धरणि पर बाँह,गगन मानो छाया।
सभी चाहते नीर, प्यास से जो मरते,
देखे काले मेघ, दृश्य सबको भाया।
अमराई में कूक, गा रहे पिक प्यारे,
मोर नहीं हैं मूक, नृत्य करता गाया।
बरस रही जलधार ,नीड़ में कीर छिपे,
गाते भेक मल्हार, कृषक दल हर्षाया।
बालक नंग-धड़ंग,कर रहे जल - क्रीड़ा,
यहीं अर्कजा गंग, नहा हर्षण पाया।
काले घन के बीच,चमकती है बिजली,
बहती काली कीच,पावसी है माया।
हरे - भरे तरु कुंज, लताएँ झूम रहीं,
दृश्य हरित है मंजु, नई छवि सरमाया।
रहें न काले मेघ, देश के अंबर में,
बढ़े प्रगति का वेग, सुखी हों नर-जाया।
'शुभम्' करें कर्तव्य, सभी अपने- अपने,
जीवन हो तब भव्य,सुखी हों हमसाया।
●शुभमस्तु !
29.05.2023◆10.30 आ०मा०
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