रविवार, 11 अगस्त 2024

खूँटा - युग [व्यंग्य]

 346/2024

               

©व्यंग्यकार

डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'


        आज हम सब खूँटा - युग में साँस ले रहे हैं।वैसे पहले से ही यहाँ खूँटों की कोई कमी नहीं थी,किंतु बरसात में कुकुरमुत्तों की तरह नए - नए खूँटे उगते जा रहे हैं।परम्परागत खूँटे अपने स्थान पर अपनी स्थाई जड़ें जमाये हुए हैं।नित्य नए उगते हुए खूँटों की तो जैसे बाढ़ ही आ गई है।

खूँटा पालतू पन का दूसरा नाम है।किसी के पालतू बन जाने से उसका दुम हिलाना भी आवश्यक हो जाता है। आवश्यकता पड़ने पर पालतू की दुम सहलानी भी पड़ती है। यह तो वक्त - वक्त की बात है कि कब किसे किसकी दुम सहलानी पड़े।आदि काल से खूँटे का महत्त्व कभी कम नहीं हुआ।आप तो जानते ही हैं कि मतलब के लिए गधे को बाप बनाना पड़ता है। तो यह खूँटे से बँधना कौन सी बड़ी बात है! परंपरागत खूँटे से गाय भैंस बकरी बँधती चली आ रही हैं।ढोर को चारा चाहिए और खूँटा मालिक को दूध। इस प्रकार खूँटा और दूध का अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है।जब गाय दूध देना बंद कर देती है,तो उसे उसका मालिक खूँटा बंधन से मुक्त कर छुट्टा खाने के लिए छोड़ देता है। यदि विश्वास न हो तो प्रतिदिन सड़कों ,गलियों ,खेतों आदि में छुट्टा गायों के झुंड के झुंड देख लीजिए।यही हमारी गौ माता हैं,जिन्हें उनके पुजारी मालिकों ने खूँटा -मुक्त कर दिया है कि जाओ और दूसरे के खेतों को चरो ,जहाँ चाहे विचरो या कहीं भी जा मरो ,पर इस खूँटे से टरो।जब दूध ही नहीं तो तुम्हारी जरूरत ही क्या है ?वैसे तू हमारी पूजनीय गौ माँ है।वैसे तेरे साथ ही हम खूँटे को भी पूज लेते हैं। दूध देने तक तेरी लात भी सह लेते हैं।जब दूध ही नहीं तो लात क्यों सहें और खूँटे से बाँध कर चारा कहाँ से ला धरें!

            आज के युग में चमचों और गुर्गों के लिए नेता एक सशक्त टिकाऊ और  आयकारी खूँटा है।यह अलग बात है कि उसने इन्हीं के सहारे जनता को लूटा है।बस हाँ जी, हाँ जी कहना ; और सदा खुश रहना।दिन को रात कहे तो रात कहो।रात को दिन कहे तो दिन ही कहो। जिस खूँटे से बँधे हो, उसी के रहो।अपनी विवेक - बुद्धि को  पीछे ही रखो।खूँटे की सौ -सौ कमियों को मखमली चादर तले ढँको।खूँटे के समक्ष सदैव निरीह प्राणी दिखो।अवसर मिले तो काजू किशमिश और भरे भगौने भखो।हाँ,इतना अवश्य है कि घोड़े की पिछाड़ी और नेता की अगाड़ी से अपने को दूर ही रखो।खूँटे और डोर के बीच दूरियाँ से दिखो।

पत्नियों ने अपने -अपने पतियों को अपना खूँटा मान लिया है।यह अलग बात है कि कोइ -कोई पत्नी ही पति का खूँटा बनी हुई हैं।संतान होने और पत्नी के लिए और भी कई खूँटे पैदा हो जाते हैं।जिन्हें छोड़कर अपना रुख मोड़कर वह कहीं नहीं जा सकती।बस बँधे रहना है। यही गृहस्थी है। वहाँ एक से एक मजबूत खूँटे उपलब्ध हैं।

देश की सामाजिक ,धार्मिक और राजनीतिक व्यवस्था खूंटाधारित व्यवस्था है।सब किसी न किसी खूँटे से बंधकर सुख लूट रहे हैं।समाज है,इसलिए उसे सेवा चाहिए।उसे भी कुछ खूँटों का सहारा चाहिए।इसके लिए समाज सेवी अहर्निश  तैयार हैं।जो खांड खूंदेगा ,वह खांड तो खायेगा ही।वे भी खा रहे हैं और खूँटा बनकर अपना कर्तव्य निभा रहे हैं।धर्म पंडे ,पुजारियों,महंतों और

सेवा कर्मियों के खूँटों से बंधा है। यदि ये न हों तो भक्त बेचारे मंदिर में पूजा भी न करने पाएँ।इसके लिए उन्हें भले ही पंडे पुजारियों को सेवा शुल्क देना पड़े ,तो वे देते भी हैं।अन्यथा भगवान के पूजन क्या ,दर्शन से वंचित होने का भय भी है।राजनीति तो पूरी की पूरी नेताश्रित है। वही इसके सुदृढ़ खूँटे हैं।इनके बिना बेचारी अपंग है।चमचे अपनी चमचेगीरी और मक्खनबाजी से गुर्गे अपनी गुर्गाई और तेल मालिश से उसे खूँटों को चिकनाते चमकाते रहते हैं।जैसे बाँस के लट्ठ को तेल पिलाकर मजबूत बनाया जाता है ,वैसे ही खूँटों को मक्खन से सुदृढ़ करना अनिवार्य हो जाता है।

खूँटा - महिमा अनन्त है।खूँटा सजीव हो या निर्जीव , उसका अपना विशेष स्थान है। खूँटा बंधित खूँटे के बंधन से महान है।खूँटा ही तो उसकी आन -बान और शान है।यदि आप किसी खूँटे से बँधे हुए हैं,तो आपको क्या बतलाना।आप तो स्वयं अनुभवी हैं।हो सकता है आप भी किसी के लिए खूँटा -  स्वरूप हों। युग ही खूँटों का है,तो खूँटात्व से आप बच भी कैसे सकते हैं।खूँटा-धर्म निभाना आपसे अधिक भला कौन जान-समझ  सकता है।धर्म , समाज,राजनीति,कूटनीति, शिक्षा, व्यवसाय, नौकरी, अन्य आय(रिश्वत,दलाली,मिलावट,??) आदि किसी भी क्षेत्र से जुड़े हुए होंगे ,तो कोई न कोई कहीं न कहीं आपके खूँटे भी अस्तित्व में विराजमान होंगे।खूंटाभा की द्युति ही निराली है।जहाँ हरी-हरी हर पेड़ की डाली है।जहाँ राह न भी हो तो खूँटों ने राह निकाली है।खूँटों से बंधित जन ने खुशियों भरी बजाई ताली है।उसे फिर घूमने -फिरने के लिए खुला आसमान है।मोबाइल उसके हाथ में है,मुट्ठी में जहान है।

शुभमस्तु !

11.08.2024●4.00आ०मा०

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