रविवार, 11 अगस्त 2024

खूँटा [ गीतिका ]

 345/2024

                 

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


लोग   मुझे   कहते   सब    खूँटा।

गड़ा   ठौर   पर    अपने    खूँटा।।


गाय   भैंस   पालतू     ढोर   सब,

इन  सबकी    चाहत    है   खूँटा।


शेर    नहीं    बँधते     खूँटे     से,

चीता    नहीं      चाहता     खूँटा।


मतलब  से     सब  बँधे  हुए  हैं,

वरना  जड़  होता     हर    खूँटा।


टुकड़े  की   खातिर  कूकर   भी,

अपनाते   हैं  जन    का    खूँटा।


बिना   डोर  के     बँधते   चमचे,  

नेताओं    को     समझें     खूँटा।


घर  वाली  पति से   बँध  जाती,

कहती  है     संतति  को   खूँटा।


महिमा  'शुभम् ' बड़ी   भारी है,

नाम  कमाता  जग    में    खूँटा।


शुभमस्तु !


11.08.2024●2.15आ०मा०(रात्रि)

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