शनिवार, 10 अगस्त 2024

बूँद [बाल कविता]

 338/2024

       

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


 नन्हीं -   नन्हीं    बन    गिरती   हूँ।

बादल  से     बुँदियाँ    बनती   हूँ।।


नहीं   धार   बन     गिरता   पानी।

कण - कण   टूट     बने  बर्फानी।।


कहते   सभी  लोग    जल  बरसा।

देख -  भींग  मन   सबका  हरषा।।


सह   पाता   कब     धारा   कोई।

बूँद   बना     धरती     पर    बोई।।


नभ  मेघों   से     बाहर     आती।

समझ न  अपनी   गति  मैं पाती।।


खेत  वनों     ऊसर    में   गिरती।

सरिता सीपों     बीच   विचरती।।


कभी   धूल में    गिर    जाती  हूँ।

 मोती भी  बनती     स्वाती    हूँ।।


केले   में      चंदन    मैं    बनती।

कभी सर्प विष   बन कर डसती।।


वृक्ष   -  मूल   में   अमृत  भरती।

जीवन     देकर    मैं  तब तरती।।


'शुभम् ' बूँद   की अकथ कहानी।

वर्षा ऋतु     का    अमृत  पानी।।


शुभमस्तु !


08.08.2024●1.30प०मा०

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