364/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
राखी भैया दूज
नहीं पर्याय,
मात्र प्रतिलोम
दरिंदों के,
नोंच रहे जो पंख
उड़ रही
नारी - परिंदों के।
किसी मुखौटे के
नीचे छिप बैठा
दनुज दरिंदा,
कोई नहीं जानता
माँस खींचता जिंदा।
जिसकी माता
भारत माता!
जन गण मन
अधिनायक गाता,
उसका नारी से
ये कैसा नाता?
कहना
सभी दरिंदों को
मानव
है यह झूठ,
ओढ़े खाल
मनुज की
वे हिंस्र सुबूत।
कहना पशु
या ढोर,
इन्हें अपमानित करना,
'शुभम्' भगिनि माताओ!
उनसे बचकर रहना!
शुभमस्तु !
22.08.2024●9.45आ०मा०
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