गुरुवार, 1 अगस्त 2024

बरसे बादल बूँद ले [ दोहा ]

 329/2024

          

[बिजली, बारिश, बूँद, बाढ़ ,छतरी]


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

     

                सब में एक

बरसे  बादल  बूँद ले, बिजली  की  चमकार।

गूँजी वन - वन बाग में, बरस  रही जलधार।।

छुई  छबीली  देह   को, बिजली दौड़ी  अंग।

क्षण भर में अरुणिम हुआ,तन का गोरा   रंग।।


बारिश बिजली  बूँद  का,आपस में    अनुबंध।

खारी  सागर  से   भरा,जल   मीठा सह   गंध।।

बारिश प्राण किसान की,अगजग की हर प्यास।

तृप्त    करे  तरु जंतु जन,लगा रहे सब   आस।।


बूँद - बूँद  से  घट   भरे,  सागर   बने    अथाह।

शुभ  कर्मों का  फल बड़ा,करता जन  अवगाह।।

बूँद   गिरी   आकाश   से, ज्ञात  नहीं    गंतव्य।

गिरे  सर्प-मुख    धूल   में, क्या होगा भवितव्य।।


मेघ   बरसते  पावसी , सरिताओं  में    बाढ़।

नित्य  दिखाते  भूमि   से, अपना  प्रेम  प्रगाढ़।।

धन  की आए बाढ़ जो,करता समुचित  दान।

फलता  है शुभ  कर्म  ही ,  देता अनुपम मान।।


छतरी ले छप-छ्प चले,बालक घर की ओर।

बस्ता  लादे   पीठ  पर, नाच  रहे  वन   मोर।।

छतरी मत  ले  हाथ में, चपला की   चमकार।

तड़पे  बिजली  मेघ में,  करना प्रथम विचार।।


                   एक में सब

बिजली   बारिश   बूँद से,बाढ़  मचाए   रोर। 

गरज  रहे  दिन - रात  ये, मेघ  सजल घनघोर।।


शुभमस्तु !


30.07.2024●10.30 प०मा०

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