बुधवार, 14 अगस्त 2024

होंनहार बिरवान [ सजल ]

 347/2024

               

समांत   :  अले

पदांत    :    हैं

मात्राभार :  16.

मात्रा पतन :शून्य


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


होंनहार       बिरवान     फले     हैं।

जन - जन   वंदित  सदा  भले   हैं।।


कर्मठता       की      पूजा     होती।

विपदाओं      के      ढूह    टले   हैं।।


मंजिल  बस    उनको    मिलती  है।

बिना      रुके  जो  राह    चले   हैं।।


स्वार्थ    लिप्त   अपने   हित  जीते।

जन  - जनता   को   सदा  खले  हैं।।


अहंकार     में     चूर      रात - दिन।

सूरज     उनके     शीघ्र    ढले    हैं।।


दीनबंधु         निर्धन      हितकारी।

सभी    लगाते     उन्हें    गले    हैं।।


'शुभम् ' कर्म   ही  सदा   अमर  है।

कर्महीन   ने      हाथ    मले     हैं।।


शुभमस्तु!


12.08.2024●2.30आ०मा० 

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