347/2024
समांत : अले
पदांत : हैं
मात्राभार : 16.
मात्रा पतन :शून्य
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
होंनहार बिरवान फले हैं।
जन - जन वंदित सदा भले हैं।।
कर्मठता की पूजा होती।
विपदाओं के ढूह टले हैं।।
मंजिल बस उनको मिलती है।
बिना रुके जो राह चले हैं।।
स्वार्थ लिप्त अपने हित जीते।
जन - जनता को सदा खले हैं।।
अहंकार में चूर रात - दिन।
सूरज उनके शीघ्र ढले हैं।।
दीनबंधु निर्धन हितकारी।
सभी लगाते उन्हें गले हैं।।
'शुभम् ' कर्म ही सदा अमर है।
कर्महीन ने हाथ मले हैं।।
शुभमस्तु!
12.08.2024●2.30आ०मा०
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