बुधवार, 28 अगस्त 2024

भादों कृष्ण निशीथ में [ दोहा ]

 370/2024

     

[पीहर,भादों,कजरी,बदरी,पपीहा]


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


               सब में एक

पीहर से  आई     यहाँ,  भूली बाबुल  - धाम।

रम कर जग-ससुराल में,भाया मन को काम।।

पीहर  की   स्वाधीनता, मिले  नहीं  ससुराल।

गए  खेल - क्रीड़ा सभी,बदल गया सब हाल।।


भादों कृष्ण निशीथ में, प्रकट  हुए  घनश्याम।

द्वापर युग कृतकृत्य कर,धन्य किया ब्रजधाम।।

सावन भादों में   धरा, करे  नीर की   तृप्ति।

पावस नित मनभावनी, परिणामी प्रिय भक्ति।।


कजरी  मेघ  मल्हार के, सावन भादों   मास।

अमराई    सूनी  पड़ी,   झूले   रही  न   घास।।

कजरी  गाती  मालिनी, झूम-झूम कर  नृत्य।

मनमोहक  मादक लगें,मलय पवन- से  कृत्य।।


प्रकट   हुए  ब्रजधाम  में, वासुदेव घनश्याम।

बदरी  झर-झर कर झरे,गोकुल गाँव ललाम।।

बदरी   बादल   से  कहे, मत बरसाना  और।

बैठ  सूप   में  जा  रहे, ब्रजवल्लभ सिरमौर।।


पीउ-पीउ पपीहा  करे, स्वाति बूँद  की  चाह।

विरहिन  की उर - पीर में, बढ़ने लगा उछाह।।

पपीहा- सी  निष्ठा  मिले,  लक्ष्य साधना - हेतु।

तृषा  मिटे निज  साध  की,फहराए यश- केतु।।


               एक में सब

सखियाँ कजरी गा रहीं,पीहर भादों मास।

बदरी उमड़ी  बाग में, पपीहा बोले   पास।।


शुभमस्तु !


27.08.2024●10.45 प०मा०

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