बुधवार, 14 अगस्त 2024

सबको खूँटा चाहिए [दोहा ]

 350/2024

          

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


खूँटा  गाड़े  आदमी,  निज  बंधन के हेत।

खूँटे  से उद्धार   क्यों,  होता   है नर चेत।।

यहाँ  वहाँ  खूँटे  गड़े, नहीं  एक  दो चार।

मानव   खूँटाबद्ध   है,  खूँटों का संसार।।


नेता  से  चमचा   बँधा, सुदृढ़  खूँटा जान।

आजीवन चमचा  रहा,यही  मात्र पहचान।।

राजनीति  खूँटा   बनी, चाह   रहे  उद्धार।

काला  कम्बल देह  पर, बाँधे बिना विचार।।


सबको  खूँटा  चाहिए, जाग्रत  खूँटा -मोह।

नारी को पति का मिला,खूँटा फिर भी द्रोह।।

संतति खूँटा प्यार का, स्वयं रहा नर गाड़।

नारी को  नित  ढूँढ़ता,स्वयं लगाकर बाड़।।


खूँटे से  दृढ़  रज्जु का,एक सुदृढ़ अनुबंध।

नहीं  छोड़ता एक  भी, जकड़े हुए सुगंध।।

मज़हब   के   खूँटे  सभी,  करते हिंसाचार।

सत्य  नहीं   स्वीकारते, नहीं  मानते हार।।


पंडा    पूजक    मौलवी,  सब  ही ठेकेदार।

खूँटों  से  जन बाँध कर,करें धर्म -व्यापार।।

फिरता छुट्टा साँड़ - सा,बिना काज मनुजात।

खूँटे  से   उद्धार   हो,  सोचे    संध्या प्रात।।


अचल  सचल  निर्जीव  भी,खूँटों के आकार।

मानव  जिंदा  विश्व  में, सचल जीव  साधार।।


शुभमस्तु !


12.08.2024●2.15प०मा०

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