344/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
खूँटे से सब बँधे हुए हम।
कोई ज्यादा कोई कुछ कम।।
सबके खूँटे अलग - अलग हैं,
कोई सुदृढ़ कोई बेदम।
राजनीति के कुछ खूँटे हैं,
कोई पीता धर्मों की रम।
खूँटे ने बाँधा न किसी को,
सभी आप बँध करते छम- छम।
सेवा में समाज की बँधकर,
लगा रहा मस्तक पर कुमकुम।
कोई बनता पहलवान भी,
ठोक रहा दुर्बल को ही खम।
नोटों का खूँटा है जिसका,
निर्धन को ही बन जाता यम।
'शुभम्' न चलता काम किसी का,
बिना न खूँटा निकले धम - धम।
शुभमस्तु !
10.08.2024●7.15प०मा०
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