शनिवार, 10 अगस्त 2024

सावन आया [गीतिका ]

 332/2024

             


जागा   बाग     महकती    कलियाँ।

सावन   आया      झूलें    सखियाँ।।


गातीं      कजरी     गीत     मल्हारें,

मधुर -  मधुर  करतीं नित  बतियाँ।


झड़ी  लगी पावस   की   रिमझिम,

टप -  टप  टपक   रहीं  हैं बुँदियाँ।


प्रीतम    की    नित   याद   सताए,

पड़ीं  सेज    पर   लगें  न अँखियाँ।


नए  - नए    अँखुए     उग    आए,

झुरमुट  बन   झुकतीं   पल्लवियाँ।


चले       पनारे       नदियाँ     नाले,

लेश  नहीं   पानी     की    कमियाँ।


'शुभम्'  दृश्य   है   सुखद   मनोहर,

अंकित  कर अपनी   नव   छवियाँ।


शुभमस्तु !


05.08.2024●6.30आ०मा०

                   ●●●

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...