332/2024
जागा बाग महकती कलियाँ।
सावन आया झूलें सखियाँ।।
गातीं कजरी गीत मल्हारें,
मधुर - मधुर करतीं नित बतियाँ।
झड़ी लगी पावस की रिमझिम,
टप - टप टपक रहीं हैं बुँदियाँ।
प्रीतम की नित याद सताए,
पड़ीं सेज पर लगें न अँखियाँ।
नए - नए अँखुए उग आए,
झुरमुट बन झुकतीं पल्लवियाँ।
चले पनारे नदियाँ नाले,
लेश नहीं पानी की कमियाँ।
'शुभम्' दृश्य है सुखद मनोहर,
अंकित कर अपनी नव छवियाँ।
शुभमस्तु !
05.08.2024●6.30आ०मा०
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