334/2024
[वारिद,वर्षा,पुरवा,पछुआ,पावस]
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सब में एक
वारिद विरुद विशेष है,विशद वनों के बीच।
विटप उगें स्वाधीन हो,वारिधरों से सीच।।
वारिद आए झूमते, चंचल भूरे श्याम।
चलीं हवाएँ सावनी, क्षण भर नहीं विराम।।
मन मयूर हर्षित हुआ, आया वर्षा- काल।
अमराई आबाद है,झुक - झुक जाती डाल।।
कजरी और मल्हार का, पावन वर्षा-काल।
बहनें जो बड़भागिनी, झूल रहीं दे ताल।।
पुरवा के झोंके चले, उड़े देह से चीर।
कामिनि वह बड़भागिनी,स्नान करे नभ - नीर।।
पुरवा गरम स्वभाव की,भर-भर लाती स्वेद।
जान न पाया आज भी, गूढ़ राज का भेद।।
झूम -झूम पछुआ चले,चले वारिधर खींच।
औलाती टप - टप गिरें, नैन रही तिय मींच।।
पछुआ प्रेम प्रवाहिनी, भर-भर लाती नीर।
कल-कल छल-छल जल करे,सुरसरिता के तीर।।
मावस के तम तोम में,पावस करे धमाल।
लालटेन ले आ गए, भगजोगनि के लाल।।
ऋतुरानी पावस बड़ी, देख रहे नभ ओर।
टर्र - टर्र मेढक करें, मेघ मचाएँ रोर।।
एक में सब
पावस ले वारिद चली,वर्षा हो घनघोर।
पुरवा पछुआ झूमतीं,नाच रहे वन मोर।।
शुभमस्तु !
06.08.2024●11.45प०मा०
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