मंगलवार, 20 अगस्त 2024

क्षितिज-छोर छाई हरियाली [ गीत

 361/2024

    

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


जहाँ - जहाँ

दृग - दृष्टि दौड़ती 

क्षितिज - छोर छाई हरियाली।


सघन सजे तरु

पल्लव दल से

फसलें खड़ीं खेत में  झूमें।

ऊँचे विटप 

खड़े मेड़ों पर 

अंबर की चोटी को चूमें।।


बहती हवा

विरल शीतल - सी

नाच रही हर डाली -डाली।


विटप -छाँव में

पड़ी खाट पर

लेट - बैठ   निगरानी करते।

आवारा पशु

फसल न खाएँ

कृषक थकान देह की हरते।।


वहीं पास में

बरहा बहता

चौड़ी भरी सलिल से नाली।


अहा प्रकृत

जीवन भी क्या है

क्यों न सभी जन इनको चाहें!

शुद्ध हवा पानी

असीम हैं 

खोल खड़ी है  प्रकृति  बाँहें।।


'शुभम्' एक झपकी

आ ले ले

पड़ी खाट पर दुपहर वाली।


शुभमस्तु !


20.08.2024● 5.00आ०म०

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