335/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
ढूँढ़ रहा मैं सघन अँधेरा।
मुझे न भाता सुखद सवेरा।।
मैं झींगुर झींगुर ही रहना।
तितली - सा बन मुझे न उड़ना।।
सदा चाहता काला घेरा।
ढूँढ़ रहा मैं सघन अँधेरा।।
होता है तम का सन्नाटा।
देता हूँ गालों पर चाँटा।।
करता मैं दरार का फेरा।
ढूँढ़ रहा मैं सघन अँधेरा।।
मस्ती में भर गीत सुनाता।
सोता है मैं उसे जगाता।।
अपनी धुन का सरगम मेरा।।
ढूँढ़ रहा मैं सघन अँधेरा।।
धुन सुन कर बालक डर जाते।
देखे बिना मुझे घबराते।।
सघन रात में डालूँ डेरा।
ढूँढ़ रहा मैं सघन अँधेरा।।
है स्वभाव मेरा भी अपना।
अपनी धुन में झीं - झीं जपना।।
'शुभम्' अकेलापन का चेरा।।
ढूँढ़ रहा मैं सघन अँधेरा।।
शुभमस्तु !
08.08.2024●10.30 आ०मा०
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शनिवार, 10 अगस्त 2024
झींगुर [बालगीत]
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