355/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
व्हाट्सएप का कुनबा भारी।
काम न आए भीड़ हमारी।।
भरी भीड़ में सभी अकेले।
लदे ठेल पर मानो केले।।
हों बीमार न कोई आता।
सह अनुभूति न रोगी पाता।।
शब्दों का संदेश खोखला।
कैसा ये इंसान दोगला।।
बातों के मीठे न बतासे।
जुगनू से होते न उजासे।।
है अभाव में कोई जीता।
भेजे कोई नहीं पपीता।।
मुखपोथी पर कुछ मरते हैं।
मिट्ठू मियां बने फिरते हैं।।
इंस्टाग्रामी कॉलोनी का।
हाल वही है मुखपोथी - सा।।
आभासी दुनिया में जीते।
निरे खोखले मानुस रीते।।
समझाने से समझ न आए।
सच्ची राह कौन दिखलाए।।
जैसे गए सावनी झूले।
व्हाट्सएप में त्यों नर भूले।।
ज्यों निदाघ के धुंध बगूले।
आसमान को जाकर छूले।।
'शुभम् ' लौट धरती पर आओ।
व्हाट्सएप से मोह हटाओ।।
है कठोर यथार्थ की धरती।
नाव न पार मनुज की करती।।
शुभमस्तु !
15.08.2024●4.00प०मा०
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