शुक्रवार, 16 अगस्त 2024

ह्वाट्सएप का कुनबा [ चौपाई]

 355/2024

        

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


व्हाट्सएप    का   कुनबा   भारी।

काम न   आए    भीड़   हमारी।। 

भरी   भीड़  में      सभी  अकेले।

लदे  ठेल    पर    मानो     केले।।


हों   बीमार    न    कोई   आता।

सह अनुभूति  न   रोगी   पाता।।

शब्दों    का    संदेश   खोखला।

कैसा   ये      इंसान     दोगला।।


बातों   के     मीठे   न    बतासे।

जुगनू  से  होते     न    उजासे।।

है   अभाव   में      कोई  जीता।

भेजे    कोई     नहीं    पपीता।।


मुखपोथी  पर  कुछ    मरते   हैं।

मिट्ठू   मियां  बने     फिरते    हैं।।

इंस्टाग्रामी       कॉलोनी     का।

हाल वही है    मुखपोथी - सा।।


आभासी   दुनिया      में    जीते।

निरे   खोखले     मानुस    रीते।।

समझाने  से समझ   न    आए।

सच्ची  राह  कौन     दिखलाए।।


जैसे      गए      सावनी    झूले।

व्हाट्सएप  में  त्यों  नर    भूले।।

ज्यों  निदाघ   के  धुंध    बगूले।

आसमान  को  जाकर    छूले।।


'शुभम् ' लौट   धरती  पर आओ।

व्हाट्सएप  से  मोह     हटाओ।।

है   कठोर   यथार्थ   की   धरती।

नाव  न पार  मनुज   की करती।।


शुभमस्तु !


15.08.2024●4.00प०मा०

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