371/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
हिंदी हिय का हार
शाटिका देवनागरी
सुता संस्कृत की प्यारी।
जन-जन जिह्वा वास
मधुरिमा मधु की मानो
'अ' से 'ज्ञ' मधु सिंधु समाई।
रंग - रंग के छंद
दसों रस छंद विविधता
धरा हिंद की गंगा धाई।।
शब्द शक्तियाँ अभिधा
ललित लक्षणा तीनों
श्रेष्ठ व्यंजना सबसे न्यारी।
हिंदी से है हिंद
शीश का बिंदु दमकता
सनातनी संस्कृति शोभी।
विदा हुए तज देश
लुटेरे अत्याचारी
शोषक आतंकी लोभी।।
हिंदी भाषा शुभता
साहित्यिक सरिता शोभित
हिंदभूमि ममता - क्यारी।
जन्मे सूर कबीर
दोहाकार बिहारी
दास तुलसी पंत निराला।
घन आनंद प्रसाद
खिली कवियों की क्यारी
हिंदी का साम्राज्य विशाला।।
'शुभम्' - धर्म हिंदी ही
सहज समर्पित निशि -दिन
नहीं सुत को हिंदी भारी।
शुभमस्तु !
28.08.2024● 11.00आ०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें