बुधवार, 14 अगस्त 2024

कर्मठता की पूजा [ गीतिका ]

 348/2024

            

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


होंनहार       बिरवान     फले     हैं।

जन - जन   वंदित  सदा  भले   हैं।।


कर्मठता       की      पूजा     होती,

विपदाओं      के      ढूह    टले   हैं।


मंजिल  बस    उनको    मिलती  है,

बिना      रुके  जो  राह    चले   हैं।


स्वार्थ    लिप्त   अपने   हित  जीते,

जन  - जनता   को   सदा  खले  हैं।


अहंकार     में     चूर      रात - दिन,

सूरज     उनके     शीघ्र    ढले    हैं।


दीनबंधु         निर्धन       हितकारी,

सभी    लगाते     उन्हें    गले    हैं।


'शुभम् ' कर्म   ही  सदा   अमर  है,

कर्महीन   ने      हाथ    मले     हैं।


शुभमस्तु!


12.08.2024●2.30आ०मा० 

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