बुधवार, 14 अगस्त 2024

स्वाभिमान का पर्व है [दोहा]

 352/2024

   

[भारतवर्ष,तिरंगा,स्वतंत्र,स्वाभिमान,पर्व]


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                  सब में एक

भावी  भारतवर्ष  का,भयकारक है  रूप।

वर्तमान बिगड़ा  बड़ा, बिका हुआ  है  भूप।।

कहते   भारतवर्ष  को,जग में देश  महान।

संस्कार   मरने   लगे,  कहाँ  रही वह शान।।


लिए    तिरंगा  हाथ   में,  होते   हैं बलिदान।

वीर    हमारे  देश  के,   केवल   वही महान।।

छाप   तिरंगा  गाल  पर, कहें देश का   भक्त।

नेतागण   इस   देश   के,  वैभव   में अनुरक्त।।


कहते    हुए   स्वतंत्र  वे, मनमानी   में  लीन।

लूटें  निर्धन  व्यक्ति   को,  नेताजी  धन  छीन।।

जनता आम न हो सकी,किंचित आज स्वतंत्र।

शोषण  कर   उत्कोच  लें, फूँक  रहे   हैं  मंत्र।।


स्वाभिमान   को    बेचकर, नेता बने    महान।

धनिकों  के  घर  भर  रहे, काट देश के   कान।।

स्वाभिमान जिसका  मरा,मनुज निरा वह ढोर।

मर्यादा  का  नाश  कर,  छिपा  हुआ वह   चोर।।


पावन   पर्व    महान है, भारत हुआ    स्वतंत्र।

मिली   हमें    स्वाधीनता,  एकसूत्रता     मंत्र।।

राष्ट्र   पर्व   की    पावनी, आई  घड़ी   विशेष।

अपनों को  पहचान  लें, रहें  न बनकर   मेष।।


                एक में सब

स्वाभिमान का पर्व है,भारतवर्ष     स्वतंत्र।

लिए तिरंगा   हाथ  में, पढ़ें  एकता   -   मंत्र।।


शुभमस्तु !


13.08.2024●10.45प०मा०

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