शनिवार, 10 अगस्त 2024

भू ख़ुम्बी [बालगीत]

 337/2024

             

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


पावस    की       सौगात   नवीनी।

भू खुम्बी   महके     अति   भीनी ।।


 जब  सित  श्याम मेघ   नभ छाते।

धरती पर   जल   अति   बरसाते।।

जेठ  मास   की     गरमी     छीनी। 

भू खुम्बी   महके    अति    भीनी।।


कोई    लाल      सफेद     सुहानी।

धरती     माता      बनती    दानी।।

हरित  वर्ण   से   रहित     प्रवीनी।

भू खुम्बी    महके    अति  भीनी।


धरती   से   जब     बाहर   आए।

फोड़  धरा को    मुख    चमकाए।।

लवनी  की    कोमलता     लीनी।

भू खुम्बी  महके    अति  भीनी।।


खोद    उखाड़    घरों   में    लाएँ।

अम्मा  से      सब्जी      पकवाएँ।।

नमक  मिर्च   सँग , कहीं न  चीनी।

भू खुम्बी    महके    अति   भीनी।।


आओ  'शुभम्'    खेत   में   जाएँ।

खुम्बी  खोज    मेंड़    से     लाएँ।।

किसी  -  किसी   में  जाली झीनी।

भू खुम्बी महके     अति   भीनी।।


शुभमस्तु !


08.08.2024 ●12.30 प०मा०

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