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©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
हरियाली ही हरियाली है।
हरी - हरी लहरी डाली है।।
सावन भादों बरस रहे हैं।
ताल, नदी- नद हरष बहे हैं।।
तारों भरी न नभ -थाली है।
हरियाली ही हरियाली है।।
धरती पर उगतीं बहु झाड़ी।
हरी दूब भी तनकर ठाड़ी।।
अमराई झूले वाली है।
हरियाली ही हरियाली है।।
नीम बबूल शमी हरियाये।
शीशम आम खूब लहराए।।
पीपल पीट रहा ताली है।
हरियाली ही हरियाली है।।
बेलों का वितान लहराया।
सुखद सघन पेड़ों की छाया।।
बतियाती लगती नाली है।
हरियाली ही हरियाली है।।
फहराता है 'शुभम्' तिरंगा।
कल- कल बहतीं यमुना -गंगा।।
झूला झूल रही आली है।
हरियाली ही हरियाली है।।
शुभमस्तु !
09.08.2024●3.00प०मा०
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