शनिवार, 10 अगस्त 2024

विषाक्त पवन [अतुकांतिका]

 339/2024

               


©शब्दकार

डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'


विषाक्त पवन

परित : हमारे

बह रहा है रात- दिन,

बच सको तो

देख लो बचकर,

दूभर साँस लेना।


कर सको तो

कर लो 

अपना बचाव,

भले हिंसक न होना,

टेढ़ी अँगुलियों के बिना

घी कब निकलता?

यह ध्यान रखना।


जी सको तो

आप जी लो

शांति से,

पर ये जमाना

जीने न देगा

शांति से तुमको 

यहाँ पर।


जा रही है

दुनिया कहाँ

किस ओर

कोई न जाने,

बढ़ता ही जा रहा

संघर्ष जीवन का

हमारा।


एकता और प्रेम

अच्छे हैं किताबों में

सदा से,

किंतु हैं विपरीत 

सब हालात

 हक़ीक़त भी यही है।


देख तो जग में

'शुभम्' अब झाँक बाहर,

दृश्य दहलाने के लिए

अंतर तुम्हारा,

कोई उजाले की 

किरण दिखती नहीं है।


शुभमस्तु !


08.08.2024●9.45प०मा०

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