शनिवार, 10 अगस्त 2024

जागा बाग [सजल ]

 331/2024

               

समांत    : इयाँ

पदांत     :  अपदांत।

मात्राभार : 16

मात्रा पतन: शून्य।


जागा   बाग     महकती    कलियाँ।

सावन   आया      झूलें    सखियाँ।।


गातीं      कजरी     गीत     मल्हारें।

मधुर -  मधुर  करतीं नित  बतियाँ।।


झड़ी  लगी पावस   की   रिमझिम।

टप -  टप  टपक   रहीं  हैं बुँदियाँ।।


प्रीतम    की    नित   याद   सताए।

पड़ीं  सेज    पर   लगें  न अँखियाँ।।


नए  - नए    अँखुए     उग    आए।

झुरमुट  बन   झुकतीं   पल्लवियाँ।।


चले       पनारे       नदियाँ     नाले।

लेश  नहीं   पानी     की    कमियाँ।।


'शुभम्'  दृश्य   है   सुखद   मनोहर।

अंकित  कर अपनी   नव  छवियाँ।।


शुभमस्तु !


05.08.2024●6.30आ०मा०

                   ●●●

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...