331/2024
समांत : इयाँ
पदांत : अपदांत।
मात्राभार : 16
मात्रा पतन: शून्य।
जागा बाग महकती कलियाँ।
सावन आया झूलें सखियाँ।।
गातीं कजरी गीत मल्हारें।
मधुर - मधुर करतीं नित बतियाँ।।
झड़ी लगी पावस की रिमझिम।
टप - टप टपक रहीं हैं बुँदियाँ।।
प्रीतम की नित याद सताए।
पड़ीं सेज पर लगें न अँखियाँ।।
नए - नए अँखुए उग आए।
झुरमुट बन झुकतीं पल्लवियाँ।।
चले पनारे नदियाँ नाले।
लेश नहीं पानी की कमियाँ।।
'शुभम्' दृश्य है सुखद मनोहर।
अंकित कर अपनी नव छवियाँ।।
शुभमस्तु !
05.08.2024●6.30आ०मा०
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