330/2024
©शब्दकार
डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्
कट्टों से स्कूल गरम है,
कैसी शिक्षा
किसे पढाएं,
पाँव पूत के
निकल पालने से
बाहर को
क्यों न चलाएँ।
रोको,
रोक सको तो,
अब तो पानी
ऊपर निकला
सिर से ऊँचा,
कुछ भी सोचा?
माता- पिता
नहीं रोक पाते,
सरकारें क्या कर लेंगीं!
कहाँ शेष है
अब मानवता!
धुंआ उगलती
धूं -धड़ाम से
हैं विषाक्त
कक्षाएँ अब तो।
नर्सरियों के शिशु
वयस्कता पार
कर गए,
आने वाला
समय भयंकर,
देख बानगी
दिल दहलाता।
दोषी है
शिक्षक भी,
प्रबंध क्या कैसा
ये है?
नहीं लगाम
गधों को लगती।
बिना सींग के
सींग चलाएँ,
क्या बतलाएँ
अब 'शुभम्' यों
नित्य बलाएँ
दौड़ लगाएँ।
शुभमस्तु !
01.08.2024● 5.30पतनम मार्तण्डस्य।
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