373/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
-1-
चारा चाभें देश के, गोरे काले ढोर।
चोर उन्हें कहना नहीं, करते नित्य किलोर।
करते नित्य किलोर, खेत में छुट्टा घूमें।
स्त्रीलिंगी थाम,अधर कसकर जा चूमें।।
'शुभम्' नीति के नाथ, नहीं कहना हत्यारा।
खूँटा पावन धाम, चैन से चाभें चारा।।
-2-
चारा - पाचन के लिए,नहीं सभी का काम।
सुदृढ़ तन का तंत्र हो, अंतर कब्र सुधाम।।
अंतर कब्र सुधाम, सड़क सीमेंट पचाएँ।
डंडे से भयभीत, नहीं पल को घबराएँ।।
'शुभम्' बढ़ें संतान, रास आती है कारा।
रहे ढोर के ढोर, मिले बे पैसे चारा।।
-3-
पढ़ना अब साहित्य में, मित्रो चारावाद।
कार्यालय में भी बजा, चारे का घननाद।।
चारे का घननाद, अछूते कब अधिकारी।
धुला दूध से कौन, छूत की है बीमारी।।
'शुभम्' नीति को छोड़,नया भारत अब गढ़ना।
चारा है बेजोड़, पुस्तकों में ये पढ़ना।।
-4-
चारा खातीं नाद पर, भेड़ बकरियाँ भैंस।
खड़े - खड़े सब कर्म हों,कहाँ मानुसी सेंस।।
कहाँ मानुसी सेंस, नित्य कर्मों की चर्चा।
करना है बेकार, वृथा उपदेशी पर्चा।।
'शुभम्' मनुज के हेतु,यथा घर वैसी कारा।
विश्व -भ्रमण का सेतु,खुला फैला है चारा।।
-5-
चारा चटनी चूरमा, चमके चिकना चाम।
चार धाम निज पाँव में, जन-जन जाने राम।।
जन -जन जाने राम, झलक को जनता तरसे।
समझे कूड़ा - घास, सात पीढ़ी तक हरसे।।
'शुभम्' प्रकटते कृष्ण,पूज्य वह उनको कारा।
रुचे न रोटी - दाल, शुष्क मेवों का चारा।।
31.08.2024●2.15प०मा०
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शनिवार, 31 अगस्त 2024
चारा [कुंडलिया ]
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