बुधवार, 14 अगस्त 2024

सावन सहज सुहावना [ दोहा ]

 353/2024

     

[सावन,झूले,हरीतिमा,त्योहार,उपवास]


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

        

                   सब में एक

सावन सहज सुहावना,सर-सर सुरभि समीर।

सर  सरिता  में शीतता, सरसिज वर्ण अबीर।।

सावन   में   अमराइयाँ,  गूँज रहीं हर    ओर।

पींग  बढ़ा   झूलें   जनी,  करें  बाल किलकोर।।


झूले पर   हैं    राधिका,  झोंटा  दें  घनश्याम। 

फर-फर-फर  चुनरी  उड़े, बरसाने का  धाम।।

झूले    भूले   गाँव  के,नर - नारी  हर    बाल।

मोबाइल   ले   हाथ  में, चल  उन्मादी   चाल।।


पीपल बरगद आम की,शुभ हरीतिमा  भव्य।

नयन-दृष्टि  शीतल  बड़ी,दृश्य धरा का  नव्य ।।

दृग  में    बसी  हरीतिमा, पावस का   संगीत।

पिक मयूर प्रमुदित बड़े,कण-कण किया सतीत।।


राखी का त्योहार है,  भगिनी का मृदु   प्यार।

मृदुल  कलाई भ्रात की,खोल खड़ी है   द्वार।।

श्रम - स्नेहन   त्योहार से,चले बारहों   मास।

राखी  होली  दीप   की, दीवाली  सब  खास।।


मन  प्रभु-चरणों   में  बसे,  कहलाए उपवास।

अन्न-त्याग का अर्थ क्या,लगी फलों की  आस।।

करता  है उपवास  जो,  करे   न ऐसा  कर्म।

नीति  सत्य  अवरोध   हो,  सुदृढ़ सेवक  धर्म।।

                 एक में सब

सावन में     झूले पड़े,   राखी का     त्योहार।

चलो करें उपवास हम,  हरीतिमा   के   द्वार।।


शुभमस्तु !

13.08.2024● 11.45प०मा०

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