गुरुवार, 10 सितंबर 2020

15रु.का कोट और मेरे बाबा [ संस्मरण ]


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✍️ लेखक © 


🧥 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम' 


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            मेरे पूज्य और प्रातः स्मरणीय बाबा स्व.श्री तोता राम जी स्वतंत्रतता संग्राम सैनानी थे। इसलिए अपने अंतिम समय तक उन्होंने गांधी आश्रम के खादी के धोती, कुर्ता ,टोपी तथा अन्य सभी देहावरण धारण किए ।यहाँ तक कि जूते भी कपड़े के बने हुए ही पहना करते थे। मैं अपने पिता जी की सबसे बड़ी संतान होने के कारण दादी - बाबा का बहुत ही लाड़ला नाती रहा। वे समय -समय पर मेरे लिए भी खादी के कुर्ता -पाजामा बनवा दिया करते थे।जिन्हें पहनने में मुझे बहुत ही अच्छा लगता था।


        उस समय मेरी अवस्था यही कोई 10-11 साल की थी। चौथी कक्षा में पास के ही गाँव की प्राइमरी पाठशाला में पढ़ रहा था। फीस लगती थी मात्र एक आना,जिसे हम इकन्नी बोलते थे,जो कच्ची 1,पक्की 1से लेकर पाँचवीं कक्षा तक इकन्नी ही देनी होती थी। 


          जब जाड़े का समय आया, तो बाबा आगरा गए और मेरे लिए एक ऊन निर्मित कोट लेकर आए। कोट खुले गले का और हलके हरे रंग का था। जब मैंने पहना तो मुझे एक दम सही आया और ऐसा लग रहा था कि टेलर से सिलवा कर लाए हों। उस समय हम सभी बच्चे प्रायः पाजामे ही पहना करते थे। मैंने भी पाजामे पर कुर्ते के ऊपर कोट पहना । बहुत अच्छा लगा और दो -तीन वर्ष तक जाड़े की ऋतु आने पर पहनता। 


          बाबा ने यह भी बताया कि यह कोट गांधी आश्रम से पंद्रह रुपए का आया है। आज पंद्रह रुपए का कोई महत्त्व हो चाहे न हो ,पर उन दिनों में 1963 -64 में उसका जो मूल्य रहा होगा , वह मेरे लिए अनमोल था । उस पंद्रह रुपये के बाबा के हरे कोट के साथ बाबा का असीम लाड़-दुलार जो जुड़ा हुआ था , उससे मैं कभी उऋण नहीं हो सकूँगा। उस कोट का ऊन का एक -एक रेशा उनके लाड़ की कहानी कहते हुए अमर हो गया है। आज मेरे वह पूजनीय बाबा रहे न वह कोट ही रहा,पर उनकी अमर स्मृति का जो बिम्ब मेरे मानस में बना हुआ है , उसे कोई नहीं मिटा सकता। कोई नहीं मिटा सकता।मैं अपने उन प्रातः स्मरणीय बाबा जी को श्रद्धा पूर्वक शतशः नमन करता हूँ।


 💐 शुभममस्तु ! 


 10.09.2020◆12.30 अपराह्न।

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