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✍️ शब्दकार©
🦢 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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◆भौंरा◆
भौंरा रस पीता सदा,बदल- बदल कर फूल।
कलिका को छूता नहीं,और न छूता शूल।।
और न छूता शूल,भूल कब अलि से होती।
रसग्राहक षटपाद,चेतना कभी न सोती।।
'शुभं'मनुज अज्ञान,तमस का झप्पक झौंरा।
कलिका को ले चूम,श्रेष्ठ है नर से भौंरा।।
◆हंस◆
चुगता मोती हंस बस,चुगे न हीरा, लाल।
उसका प्रिय आहार है,नहीं बदलता चाल।।
नहीं बदलता चाल,न भावे चाँदी सोना।
मानव नहीं मराल, यही मानव का रोना।।
'शुभम'मनुज की जीभ,स्वाद में लेती शुभता।
चखती खाद्य अखाद्य,हंस बस मोती चुगता।
◆चातक◆
चातक पीता स्वातिजल,पिए न गंगा नीर।
भले पिपासा से मरे,तजे न पल को धीर।।
तजे न पल को धीर,प्राण से प्रण है भारी।
यही योग का साँच,न बाधा माया नारी।।
'शुभं'लालची जीव,मनुज अपना ही घातक।
उसे चाहिए भोग, नहीं बन पाता चातक।।
◆कोयल◆
कोयल काली रूप की,वाणी मधुर अनूप।
आता है ऋतुराज जब, गूँजे सरिता कूप।।
गूँजे सरिता, कूप, बाग, वन, पादप सारे।
कौन देखता रूप,मधुरिमा में सब हारे।।
'शुभम'मनुज तम तोम, बोलता वाणी ठाली।
खग से ले ले सीख, देख वह कोयल काली।।
◆वानर◆
सीमा अपनी लाँघता, नहीं बदलता चाल।
वानर निज में लीन है,अपने में खुशहाल
अपने में खुशहाल,बदलता चालें मानव।
बनता योगी साधु, कभी वह होता दानव।।
गदहा, शूकर,श्वान,नहीं मानव का बीमा।
'शुभम'बदलता रूप,लाँघता अपनी सीमा।।
💐 शुभमस्तु !
20.09.2020◆7.00अपराह्न।
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