शुक्रवार, 18 सितंबर 2020

कविता क्या है? [ लेख ]

 

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 ✍️ लेखक © 

 📒 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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               कविता मानवीय मनोभावों के उच्छ्वसित होने का एक सुंदर ,सशक्त और कलात्मक माध्यम है।यह मानवीय भावों-यथा:प्रेम, करुणा ,दया, ममता ,घृणा ,क्रोध आदि की रक्षा करती है।कविता मानवीय मनोभावों को उत्तेजित करने का उत्कृष्ट साधन है।किसी कवि के द्वारा जब भावनाओं का प्रसवी करण होता है ,तो कविता स्वतःस्फूर्त रूप से प्रस्फुटित होने लगती है। 


              स्वावभावतः प्रत्येक व्यक्ति प्राकृतिक रूप से एक कवि होता है,किन्तु एक सामान्य व्यक्ति और कवि में मूलभूत अंतर यह होता है कि शब्द- साधना की कलात्मक अभिव्यक्ति करके कवि अपने मनोभावों को कागज़ ,कैनवस या किसी अन्य आधार पर अंकित कर देता है और वह एक कविता बन जाती है।अन्य सामान्य व्यक्तियों में यह विशिष्ट क्षमता नहीं होती।इसीलिए वे काव्य का सृजन नहीं कर पाते। वे किसी गूँगे व्यक्ति की तरह गुड़ का रसास्वादन तो कर सकते हैं, किन्तु शब्दाधृत कला द्वारा अभिव्यक्त करने में असमर्थ होते हैं।

       

              कविता में विद्यमान प्रेरक शक्ति मानव को किसी सत्कर्म में प्रवृत्त करने की भावना को उद्दीप्त कर उसे सक्रिय बनाती है। जिस प्रकार ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि का सृजन किया जाता है ,उसी प्रकार प्रत्येक कवि भी काव्य -जगत का सृजन करता है। कविता करना एक कला है। जो इस कला में शब्द -साधना का निरन्तर अभ्यास करता हुआ आगे बढ़ता है , वह क्रमशः पारंगत होता चला जाता है। कविता के माध्यम से मानव - जगत के सुख-दुःख, आनन्द-विषाद आदि का सही रूप में अनुभव प्राप्त कर पाता है। 

       

             यह ठीक है कि कविता से मानव का मनोरंजन भी होता है,किन्तु मात्र मनोरंजन ही कविता का अंतिम उद्देश्य नहीं है। मानव -हृदय में एकाग्रता का भाव कविता से ही प्रादुर्भूत होता है। कविता मानवीय भटकाव को दूर करती हुई उसे केन्द्रीयता प्रदान करती है।सीधे -सीधे उपदेश देना नीरस और प्रभावहीन होता होता है, किन्तु कविता द्वारा उससे अधिक प्रभाव उत्पन्न किया जाता है।कविता मानव में सौंदर्य -बोध उत्पन्न कर संसार को सकारात्मक ष्टि से देखने के लिए प्रेरित करती है।वह मानवीय नकारात्मक भावों को निकालकर बाहर कर देती है।

      

             कविता मानवीय अंतःकरण में विलास की सामग्री नहीं परोसती।कविता में मानवीय भाव : करुणा ,प्रेम ,शृंगार ,हास्य,रौद्र, भयानक, वात्सल्य , वीभत्स, शांत आदि रस रूप में साधारणीकृत होकर अस्वादित होते हैं , तभी तो हमें जगत जननी सीता और जगत पिता श्री राम के पुष्प वाटिका के प्रणय प्रसंग को देख पढ़कर उनके प्रति पूज्य भाव होने पर भी उनकी प्रीति एक सामान्य प्रेमी -प्रेमिका की प्रीति की तरह आनंदानुभूति कराती है। वहाँ राम भगवान राम नहीं रह जाते ,और न सीता विशेषत्व धारित सीता माता रह पाती हैं। उन दोनों का साधारणीकृत प्रणय भाव ही सामाजिक को लौकिक प्रेम की अनुभूति का आनंद देता है।


                मानव -जाति के लिए कविता एक अनिवार्य तत्त्व है। मानव की मानवता की रक्षा करने में कविता की महत्वपूर्ण भूमिका है। मानवीय प्रकृति को जागृत बनाए रखने के लिए कविता के बीज का वपन ईश्वर द्वारा मानव -हृदय में किया गया है। पशु, पक्षी ,पौधे ,लता ,जलचर , थलचर तथा करोड़ों जीवधारियों में कविता करने का गुण नहीं पाया जाता। उन्हें इसकी आवश्यकता भी नहीं है। प्रयास करके मानव डाक्टर, अभियंता, वकील , नेता , विधायक ,सांसद ,मंत्री आदि कुछ भी बन सकता है , किन्तु सप्रयास कवि नहीं बन सकता।


             कविता केवल प्रत्येक सहृदय मानव को प्रभावित करती है। सभी लोग सहृदय नहीं होते ,इसलिए उनके ऊपर कविता का प्रभाव ऐसे होता है ,जैसे सूखे हुए पाषाण खण्ड पर कुछ देर के लिए जलधारा गिरा देना , जो अल्प काल के लिए उसे मात्र गीला ही करती है ,कोई स्थायी प्रभाव नहीं छोड़ पाती। सृष्टि में विद्यमान सौंदर्य -बोध को जागृत करने तथा उसे बनाए रखने के लिए कविता की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।कविता मानव को सौंदर्य की ओर आकर्षित ही नहीं करती ,वरन उसमें अनुरक्ति का सूत्रपात भी करती है।भौतिक सौंदर्य की तरह मानसिक सौंदर्य भी मानव की आत्मा को तृप्त करता है। कविता में पार्थिव और अपार्थिव -दोनों प्रकार के सौंदर्य का संयोग दृष्टव्य होता है। मानव पार्थिव सौंदर्य के अनुभव के बाद अपार्थिव (मानसिक) सौंदर्य की ओर आकर्षित होता है । पार्थिव सौंदर्य से अपार्थिव की ओर ले जाना कविता का प्रधान लक्ष्य है।


             कुछ कविगण अपने किसी निजी स्वार्थवश या लालच के कारण राजनेताओं, अधिकारियों ,अपने इष्ट मित्रों आदि की प्रशंसा में कसीदे काढ़ते हुए कविता का दुरुपयोग करते हुए भी देखे जाते हैं।यह कविता का अपमान है। माँ सरस्वती का असम्मान है। कवि की दृष्टि में सर्वोच्च प्राथमिकता उच्च आदर्शों ,मानवीय मनोभावों औऱ सकारात्मकता की ओर होनी चाहिए। चाटूकारिता से रंजित कविता करना कवि क़ा धर्म नहीं है।एक सच्चा कवि मानव मात्र में सौंदर्य का प्रवाह करता है। कविता की रसात्मकता ही उसका प्रधान गुण है: ' वाक्यं रसात्मकम काव्यं'। 

 💐 शुभमस्तु !


 18.09.2020◆12.55अपराह्न। 


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