गुरुवार, 3 सितंबर 2020

ग़ज़ल


✍ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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घुटन  है  हवा     कुछ  खुली चाहिए।

साँच  के  साथ  मीठी   डली चाहिए।।


धूप  से    तमतमा    रहा   है बदन,

छाँव  शजरों  की  ठंडी भली चाहिए।


कोई    शायर   न  बोले   सच बात भी,

जो   महके   नहीं   वो    कली चाहिए।


चाहतें   हैं    जुबाँ     आज  शायर सिलें,

 नचनियां    बड़ी      मनचली चाहिए।


ढोल   बजने     लगे    सब खरीदे हुए ,

मुल्क   को      महज   रँग रली चाहिए।


भेड़  बनने  में  भलाई  है समझे  हैं  वे,

ऐसी  जनता  को काली छली चाहिए।


लगाकर   मुखौटे     वे चले हैं 'शुभम',

भागने  को   महज  इक  गली चाहिए।


💐 शुभमस्तु !


03.09.2020◆4.00अपराह्न।

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