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✍️ शब्दकार ©
🎋 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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बया अनौखा पक्षी बुनकर।
नीड़ बनाता तृण चुन चुनकर।
ताड़ सरीखे पौधे चुनता।
जिन पर नीड़ सुघरतम बुनता
पानी हो समीप सरि सरवर।
बया अनौखा पक्षी बुनकर।।
पत्ती , तिनके नर ही लाता।
दौड़- दौड़कर नीड़ सजाता।।
बुला रहा मादा को मधुस्वर।
बया अनौखा पक्षी बुनकर ।।
एक नहीं दस - बीस घोंसले।
बया कीर के बड़े हौंसले।।
झुंड बना रहते सब मिलकर।
बया अनौखा पक्षी बुनकर।।
ऊपर सँकरा नीचे गोला।
शयन- कक्ष गहरा है पोला।।
द्वार सजाया सुंदर सुखकर।
बया अनौखा पक्षी बुनकर।।
बया दूधिया अंडे देती ।
सत्रह दिन में वह से लेती।।
घोंघा ,तितली देते खगवर।
बया अनौखा पक्षी बुनकर।।
मिट्टी में जुगनू चिपकाता।
हरी रौशनी से चमकाता।।
अभियंता पक्षी यह नटवर।
बया अनौखा पक्षी बुनकर।।
सोन चिरैया इसको कहते।
पीले पंखों में ये रहते।।
मादा का रँग नर से कमतर।
बया अनौखा पक्षी बुनकर।।
भोजन , पानी और सुरक्षा।
परभक्षी से भी हो रक्षा।।
खाते अन्न-कणों को चुनकर।
बया अनौखा पक्षी बुनकर।।
झुंड बनाकर रहते सारे।
नीर सरोवर नदी किनारे।।
'शुभम' नीड़ है सबसे सुंदर।
बया अनौखा पक्षी बुनकर।।
💐 शुभमस्तु !
08.09.2020◆12.15अपराह्न।
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