सोमवार, 14 सितंबर 2020

कवियों की चोरी [ दोहा ]


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✍️ शब्दकार ©

🙉 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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कवियों की चोरी हुई,मिला एक कवि चोर।

बतलाता है एडमिन,कहता करो न  शोर।।


कवि को हर स्वागत किया,दी माला गलडाल

जो कहता करते चलो,किया 'शुभम'बेहाल।।


मनमानी  अपनी करे,आजादी ली  छीन।

कहे एडमिन  'मैं सही,तू छोटा कवि  दीन'।।


मैं थापक हूँ मंच का,ताकतवर बरजोर।

तानाशाही एडमिन,है कवियों का चोर।।


खीर बनाई  जतन से, चावल डाला   डेढ़।

बाँट रहा है मंच  पर,कवयित्री को    छेड़।।


नख से शिख तक एडमिन, डूबा काव्यतरंग।

गूँगा बन आनंद ले,सब कवि जन  के  संग।।


कहता कवि से एडमिन, जागो जल्दी भोर।

मैं न कहूँ सोना नहीं, मैं अनु शासक  तोर।।


कविता करने का नहीं,मिलना एक छदाम।

आवंटित जो कर दिया,करना होगा  काम।।


एडमिनी  सबसे  भली, जैसे अश्व -  लगाम।

कविगण हरता मंच से,भले करो मत काम।।


जिम्मेदारी  का   बड़ा, मिलता उसे   इनाम।

गलत पोस्ट जो भेजता, उसकी गर्दन थाम।।


चुरा   तुम्हें   ले जाएंगे,सँभले रहना   मीत।

नाक,हाथ,टाँगें पकड़,'शुभं' न बनना क्रीत।


💐 शभमस्तु !


13.09.2020◆10.00 पूर्वाह्न।

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