गुरुवार, 24 सितंबर 2020

उज्ज्वल दिवस [ गीत ]


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✍️ शब्दकार ©

🌅 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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उज्ज्वल दिवस प्रभात बनाया।

सूर्य  अस्त  में निशि की छाया।।


रहता   कहाँ   न   दिखता हमको।

नहीं     बोलता      सुनता सबको।।

दिन  सूरज   निशि   चाँद बनाया।

उज्ज्वल   दिवस  प्रभात बनाया।।


कहते   हैं  कण - कण  का वासी।

लघुतम    इतना     नित्य उदासी।।

गिरि,  सरिता,जन ,जीव समाया।

उज्ज्वल  दिवस  प्रभात बनाया।।


खगदल  के   मुख  बोल रहा है।

कलियों    में  उर  खोल  रहा है।।

अनदेखे      ही   रूप    सुहाया।

उज्ज्वल  दिवस प्रभात बनाया।।


उसका  राज     न  जाने  कोई।

जिसने   बेल   नेह   की  बोई।।

थल  से  अम्बर  तक सरसाया।

उज्ज्वल दिवस प्रभात बनाया।।


मानव  ने     नित   उसको  बाँटा।

नाम    बदल    मतलब का छाँटा ।।

नंगा     जीव     धरा     पर   आया।

उज्ज्वल  दिवस  प्रभात बनाया।।


चोटी    खतने     की     है   भाषा।

बदली      मानव        की परिभाषा।।

जन   विनाश    का   छाया  साया।

उज्ज्वल   दिवस   प्रभात बनाया।।


पशु -   पक्षी   मानव   से  उत्तम।

अहंकार     में      नर   सर्वोत्तम।।

जुल्म    आदमी    ने    ही  ढाया।

उज्ज्वल  दिवस  प्रभात बनाया।।


जितना   ज्ञान     अँधेरा   उतना।

करता है   नित  अभिनय इतना।।

पकड़ी   कस  कर  उसने माया।

उज्ज्वल   दिवस   प्रभात बनाया।।


💐 शुभमस्तु !

21.09.2020 ◇ 12.30 अपराह्न।


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