गुरुवार, 3 सितंबर 2020

मात-पिता जिसने ठुकराए [ गीत ]

 

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✍ शब्दकार©

🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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मात -पिता जिसने ठुकराए।

नर -तन में वे  सब  चौपाए।।


अपने उदर  कुकर भी भरते।

अपने   बूते   जीते  -  मरते।।

जो  गैरों  को   बाप    बनाए।

नर -तन में  वे सब   चौपाए।।


अपने पर  चिड़ियाँ उड़ती हैं।

नहीं घोंसले   में   मुड़ती  हैं।।

अपने  अंशी    को   भरमाए।

नर -तन  में वे सब   चौपाए।।


सेवा नहीं  ,मान  क्या  जाने?

स्वार्थ ,अर्थ को ही  पहचाने।।

जीते  जी   दुश्मन  बन  जाए।

नर -तन में वे सब   चौपाए।।


पत्नी   ने    नाड़े   से   बाँधा।

 बिना किए का ले ले आधा।।

प्रभु  ऐसी   संतान    न लाए।

नर -तन में वे सब   चौपाए।।


बाप रो   रहा जिसके कारण।

मुश्किल काक्या करे निवारण

कदम-कदम वह पितु पछताए

नर-तन में   वे  सब  चौपाए।।


सब  संतान  नहीं   सुख देतीं।

सोते -  जगते    फेरें     रेती।।

कहने  को  अपना   कहलाए।

नर -तन  में वे  सब  चौपाए।।


पूर्वजन्म   का   बदला  लेतीं।

वे  औलादें   दुःख   ही देतीं।।

भाल लिखी  कैसे मिट पाए?

नर -तन में वे  सब  चौपाए।।


पूर्वजन्म  कृत ऋण  लेने को।

आतीं  कब तृण भर देने को।।

क्यों अपनी  औलाद  बताए?

नर -तन में वे  सब   चौपाए।।


क्योंकर   वे  अपनी  औलादें।

अपना बोझ बाप - सिर लादें।

आजीवन   हम   गए  सताए।

नर -तन में वे  सब   चौपाए।।


💐 शुभमस्तु  !


03.09.2020 ◆3.00अप.

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