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✍ शब्दकार©
🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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मात -पिता जिसने ठुकराए।
नर -तन में वे सब चौपाए।।
अपने उदर कुकर भी भरते।
अपने बूते जीते - मरते।।
जो गैरों को बाप बनाए।
नर -तन में वे सब चौपाए।।
अपने पर चिड़ियाँ उड़ती हैं।
नहीं घोंसले में मुड़ती हैं।।
अपने अंशी को भरमाए।
नर -तन में वे सब चौपाए।।
सेवा नहीं ,मान क्या जाने?
स्वार्थ ,अर्थ को ही पहचाने।।
जीते जी दुश्मन बन जाए।
नर -तन में वे सब चौपाए।।
पत्नी ने नाड़े से बाँधा।
बिना किए का ले ले आधा।।
प्रभु ऐसी संतान न लाए।
नर -तन में वे सब चौपाए।।
बाप रो रहा जिसके कारण।
मुश्किल काक्या करे निवारण
कदम-कदम वह पितु पछताए
नर-तन में वे सब चौपाए।।
सब संतान नहीं सुख देतीं।
सोते - जगते फेरें रेती।।
कहने को अपना कहलाए।
नर -तन में वे सब चौपाए।।
पूर्वजन्म का बदला लेतीं।
वे औलादें दुःख ही देतीं।।
भाल लिखी कैसे मिट पाए?
नर -तन में वे सब चौपाए।।
पूर्वजन्म कृत ऋण लेने को।
आतीं कब तृण भर देने को।।
क्यों अपनी औलाद बताए?
नर -तन में वे सब चौपाए।।
क्योंकर वे अपनी औलादें।
अपना बोझ बाप - सिर लादें।
आजीवन हम गए सताए।
नर -तन में वे सब चौपाए।।
💐 शुभमस्तु !
03.09.2020 ◆3.00अप.
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