गुरुवार, 24 सितंबर 2020

पुण्य पंथ पर पथिक बनो [ गीत ]


★☆★☆★☆★☆★☆★☆★

✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

★☆★☆★☆★☆★☆★☆★

पुण्य  पंथ पर पथिक बनो रे!

द्वेष - भाव    उर   से  त्यागो।

सोए    हुए   पड़े   सपने   में,

शैया   छोड़   उठो     जागो।।


कब तक  और  गुलाम रहोगे,

लोकतंत्र    की    मेष    बने।

बाँध पट्टिका निज नयनों पर,

अपनों को  डस  शेष  तने।।

भोर  हो गया   बाहर आओ,

अधिकारों  को  लड़  माँगो।

पुण्य पंथ पर पथिक बनो रे!

द्वेष -भाव   उर   से त्यागो।।


जाति - भेद   की   दीवारों  ने,

मानवता    का  नाश  किया।

नेताओं     ने   आग    लगाई ,

निज घर  विभव-उजास दिया।

मधुर   सांत्वना   भरे  बताशे,

मित्रो!   इन्हें   छोड़   भागो।

पुण्य पंथ पर पथिक बनो रे!

द्वेष -भाव   उर  से  त्यागो।।


काने    बाँट  रहे    रेवड़ियाँ,

घर    वालों    को   देते   हैं।

भूखे मरते कृषक श्रमिक ये,

वे   न   अभी  तक  चेते  हैं।।

आश्वासन   झूठे   हैं   इनके,

कह   दो   हटो   दूर   नागो।

पुण्य पंथ पर पथिक बनो रे!

द्वेष -भाव   उर  से  त्यागो।।


अपनी     जेबें    भरने   वाले,

देशभक्त      कब   होते     हैं?

ये  चूषक , शोषक  भारत के,

सदा   शूल    ही    बोते   हैं।।

देशद्रोहियों पर गिन-गिन कर,

जूतों    की      गोली    दागो।

पुण्य पंथ पर पथिक  बनो रे!

द्वेष - भाव  उर   से  त्यागो।।


श्वेत   बगबगे  वसन धार कर,

 ठग जनता  को   ठगते    हैं।

मृग-मरीचिका को दिखलाते,

ठगे   लोग  कब   जगते हैं??

निर्धन और अधिक निर्धन हैं,

'शुभम'सृजन कर लो जागो।

पुण्य पंथ पर पथिक बनो रे!

द्वेष - भाव   उर  से  त्यागो।।


💐 शुभमस्तु  !


24.09.2020☆11.15पूर्वाह्न

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...