सोमवार, 21 सितंबर 2020

स्वस्थिति ही रस है! [ अतुकान्तिका ]


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✍️ शब्दकार©

🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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सब   भटके    हुए,

झाड़ में अटके हुए,

गृहस्थ-

स्त्री,धन,अनुराग  की ओर,

सन्यासी-

त्याग, वन,विराग  की ओर,

कोई भी नहीं है

अपने  आप की  ओर !


कभी दूसरे से पलायन ,

कभी दूसरे की ओर,

बस पलायन ही पलायन!

मानव है सर्वत्र ही

चंचलायन!

चंचल तन मन !!


भाग कर तुझे

जाना है कहाँ?

क्या परमात्मा 

है वहाँ?

स्वस्थिति के अंदर

आना भी कहाँ ?

जहाँ हो ,जैसे हो

है परमात्मा  वहाँ।

स्वस्थिति को

रास नहीं आया ,

तो रस है ही कहाँ?


रस में ही मुक्ति है,

वही  भक्ति  है ,

वही तो शक्ति है,

रस कहीं बाहर नहीं,

वह है वहीं,

जहाँ तेरी स्थिति रही।


स्वर्ग है तेरे भीतर,

न वन में,

न तीर्थ में,

न घर में,

न सन्यास में,

न गार्हस्थ में,

क्योंकि वे हैं

भ्रांति ,

अशांति और क्लांति।


जहाँ है 

तेरी  दृष्टि,

वहीं भ्रांति

और अशांति की सृष्टि,

तेरा परमात्मा 

तुझमें है,

तेरे पास है,

न स्त्री में,

न धन में,

न वन में ,

न विराग में।


सारे तीर्थ हैं

तेरी आत्मा में,

तू ही तो है

तीर्थंकर,

समस्त यात्राओं से

मुक्ति का नाम ही

है तीर्थयात्रा!


एकांत का रस

नहीं जानता है,

अपना परमात्मा 

कहीं और मानता है!

पहचान तो 

अपना छंद,

अपना रसास्वाद,

अंतर गुंजित वीणा का

अनहद नाद।


बाहर कुछ नहीं,

सब भीतर है,

सुख का स्रोत भी

वहीं से स्रावित है,

बन जा शांति बुद्धि का

नहीं भाग

वन की ओर,

नहीं भाग 

नगर की ओर,

स्वस्थिति के रस में

'शुभम' आनंदमग्न रह,

वहीं तीर्थ है ,

वहीं रस है ,

वहीं परमानंद है

 परमात्मा है।


💐 शुभमस्तु !


20.09.2020 ◆11.55पूर्वाह्न।


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