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✍️शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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बेटी आधी सृष्टि है, बेटी से संसार।
ए नारी निज कोख़ में,बेटी को मत मार।।
बेटी सारे सृजन की, होती कला महान।
सुंदरता का स्रोत है,हर घर नर की शान।
सृजन नहीं तव हाथ में,बनता कर्ता मूढ़।
बेटे बेटी का सृजन,समझ राज अति गूढ़।।
कठपुतली की डोर को, रहा विधाता थाम।
उसकी करनी में मनुज,क्यों बनता है वाम।।
बेटी को कम आँककर,करता नर अपमान।
पर्दे में रखना बुरा ,उसकी भी पहचान।।
मटकी नहीं अचार की,बेटी मानव जान।
बेड़ी डाली पैर की,करता पथ व्यवधान।।
विज्ञापन -बाला बना, शोषण करता रोज।
सजा-धजा कर लूटता,बेटी के कर भोज।।
माता,बेटी,भामिनी,वामा, भगिनि अनेक।
नाम बहुत गुण धर्म से,नारी सुमन विवेक।।
दो कुल को ज्योतित करे,बेटी गुण भंडार।
शिक्षित उसे बनाइए, नहीं बेटियाँ भार।।
लता नहीं बेटी कभी , सुदृढ़ गेह आधार।
साहस धीरज धारिणी,मान सुता आधार।।
बेटी के पग बेड़ियाँ, डाल न कर कमजोर।
जाग गई हैं बेटियाँ, हुआ सुनहरा भोर।।
💐 शुभमस्तु !
28.09.2020◆2.00अप.
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