रविवार, 6 सितंबर 2020

बाल -आकांक्षा [ बालगीत ]

 

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✍ शब्दकार©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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चिड़ियों  जैसे  जो  पर  होते।

हम  पेड़ों  पर  जाकर सोते।।


कार  बसों  में क्यों हम जाते!

अम्बर में   उड़ मजे  मनाते।।

चढ़ते  नहीं   अश्व  या  खोते।

चिड़ियों जैसे  जो पर  होते।।


सड़कों पर फिर क्यों हम चलते।

पंखों  से  उड़  खूब  मचलते।।

घुटती  साँस  न हम फिर रोते।

चिड़ियों  जैसे   जो पर  होते।।


उड़कर  हम  पर्वत  पर जाते।

और   कभी   पेड़ों  पर पाते।।

नदियों   में  फिर लगते  गोते।

चिड़ियों जैसे जो पर    होते।।


भर -भर पेट  आम उड़ खाते।

बैठ   घोंसले   मजे    उड़ाते।।

क्यों सिर पर हम बोझा ढोते।

चिड़ियों  जैसे   जो पर होते।।


जल,थल ,नभ में हम उड़ जाते।

जो  मन  आता वह कर पाते।।

क्यों  फ़िर  बीज खेत में बोते?

चिड़ियों  जैसे  जो  पर  होते।।


💐 शुभमस्तु !


05.09.2020◆6.45अपराह्न।

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