गुरुवार, 17 सितंबर 2020

धरती माता [ बाल कविता ]


◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

✍️ शब्दकार©

🌍 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

धारण  करती   धरती  माता।

जन -जन तेरी महिमा गाता।।


अन्न,शाक, फल हमको देती।

कभी न हमसे कुछ भी लेती।


दूध, वसन, घर सभी मिठाई।

सब  धरती  माता   से पाई।।


सहती   सबका  भार बराबर।

हम धरती पर सदा निछावर।।


कोई   गर्त    बनाता    गहरा।

दर्द  न सुनता  मानव बहरा।।


मौन  धरे  वह  सहती  भारी।

नित बढ़ जाते पशु,नर,नारी।।


सागर  में  जल  खारी रहता।

नदियों से मीठा जल बहता।।


गिरि  पयधर से बहता सोता।

पीता, भू  पर  फसलें बोता।।


हर  किसान को धरती प्यारी।

बने महल ,घर, अटा,अटारी।।


मूढ़  मनुज जल दोहन करता।

रोता तब जब प्यासा मरता।।


कहते  टिकी  शेष फन धरती।

रात- दिवस जनरक्षा करती।।


'शुभम'मान उपकार धरा का।

नहीं करे  तू  धूम - धड़ाका।।


💐 शुभमस्तु !


17.09.2020◆11.55पूर्वाह्न

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...