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✍ लेखक ©
👨🏭 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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अपने विद्यार्थी-जीवन में परीक्षा देने के बाद मैंने कभी भी परिणाम की प्रतीक्षा नहीं की।परीक्षा हो गई ,बस गंगा नहा लिए। परिणाम जब आएगा ,तब आता रहेगा ।पहले से ही परेशान होने की आवश्यकता ही क्या है! बस इसी भाव को लिए हुए निश्चिंत बना रहता। अपना परीक्षाफल देखने भी कभी नहीं गया।मेरे गाँव के यार -दोस्त ही घर पर आकर समाचार सुनाते कि रिजल्ट निकल गया है। उन दिनों में प्रायः परीक्षाफल मई जून में ही आ जाया करते थे। वह जमाना आज की तरह इंटरनेट या डिजिटल नहीं था। परिणाम अखबारों में ही छपा करते थे।
मेरे जीवन में एक रात ऐसी भी आई , जब मैं सारी रात नहीं सो सका। चाहे इसे अति प्रसन्नता कहिए या भविष्य के प्रति चिंता का तीव्र भाव। पर सारी रात आँखों आँखों में ही निकल गई औऱ सवेरा हो गया। यह बात वर्ष 1967 की है, उस समय मैंने जूनियर हाई स्कूल (कक्षा 8) की परीक्षा उत्तीर्ण की थी।जहाँ तक मुझे ध्यान है मई या जून 1967 का महीना था।परीक्षाफल के लिए मेरे गाँव के सभी साथी उत्सुक भाव से प्रतीक्षा कर रहे थे औऱ मैं घोड़े बेचकर चैन की नींद में सो रहा था। समय यही दोपहर 1.00 बजे के बाद का रहा होगा। तभी मेरे दो -तीन साथी मेरे घर पर आए और उन्होंने मुझे जगाया और खुशखबरी दी कि 'भगवत स्वरूप अपना रिजल्ट निकल गया है औऱ तेरी फर्स्ट डिवीजन आई है।' मेरे पूछने पर उन्होंने अपने -अपने रिजल्ट भी बताए।पर यह सब कुछ सुनकर मुझे कुछ भी विशेष नहीं लगा।सब कुछ सामान्य ही लगा। वे लोग मेरे पास अखबार का वह पृष्ठ भी लेकर आए ,जिससे मैं उनकी बात का विश्वास कर सकूँ।
उस समय जूनियर हाई स्कूल की परीक्षा जनपद स्तर की होती थी। पूरे आगरा जनपद में मात्र 121 बच्चे उत्तीर्ण हुए थे , जिनमें मेरा ग्यारहवां स्थान था।देख ,सुनकर बहुत अच्छा लगा।उस समय मैं जूनियर हाई स्कूल उजरई (आगरा) का छात्र था। गर्मियों के दिन थे। गाँव में प्रायः जल्दी ही खाना बन जाता था । जल्दी ही खाकर सोने की तैयारी शुरू हो जाती थी। मच्छरों का नामो निशान नहीं था । इसलिए हम सभी खुली छतों पर , आँगन में या कहीं भी खुली जगह पर सो जाया करते थे। मैं अपने घर की छत पर सोने के लिए चला गया। अन्य दिनों में लेटते ही नींद आ जाया करती थी। पर यह क्या , आज तो नींद आँखों से कोसों दूर चली गई थी। इधर फर्स्ट डिवीजन में उत्तीर्ण होने की खुशी ,दूसरी ओर अगली कक्षा में प्रवेश लेने की चिंता।आर्ट साइड ,साइंस साइड के नाम भर सुन रखे थे। पर ज्ञान कुछ भी नहीं था।'किस कालेज में पढ़ना है ? कौन सी साइड लेनी है? कौन -कौन विषय लेने होंगे ? साइकिल चलाना भी नहीं आता, हाई स्कूल में कालेज कैसे जाऊँगा? 'इसी प्रकार की न जाने कितनी उधेड़ बुन सारी रात चलती रहीं।पर कहीं कोई निर्णय नहीं हो सका औऱ सोचते-सोचते सवेरा हो गया। नींद पता नहीं कहाँ चली गई थी।
जब होश आया तो यही भाव लेकर उठ बैठा कि अरे!सवेरा भी हो गया? फ़िर जीवन में ऐसी रात कभी नहीं आई ,जब मारे खुशी और भविष्य के प्रति चैतन्य भाव के कारण रात भर नहीं सो सका होऊं। वह दिन मेरी आज तक कि प्रसन्नता का पहला दिन था, अंतिम तो नहीं कहा जा सकता।क्योंकि रात भर नहीं सोने देने वाला वह एक ही दिन था । जो जीवन की एक अमर यादगार बनकर मेरे जेहन में बार -बार दस्तक देता है। बार -बार हर्ष विभोर कर जाता है।
💐 शभमस्तु !
01.09.2020◆11.55पूर्वाह्न।
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