मंगलवार, 29 सितंबर 2020

पंछी [ बालगीत ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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पंखों   से   पंछी  नभ  जाते।

इसीलिए  वे  खग कहलाते।।


चलो गाँव  की  ओर सैर को।

भुला सभी से किसी बैर को।।

गाँवों   में    पंछी    मिल पाते।

पंखों  से   पंछी  नभ  जाते।।


ऋतु  वसंत  में कोयल  बोले।

डाल-डाल जाकर मुँह खोले।

मोर , पपीहा   सब   हर्षाते ।

पंखों  से   पंछी  नभ  जाते।।


सुंदर   मुर्गा     हमें    जगाता।

कुक्कड़ कूँ कर  गाना गाता।।

मुर्गी   बतखें    करती   बातें।

पंखों  से  पंछी   नभ  जाते।।


गौरैया    घर    नीड़   बनाती।

चूँ चूँ  चीं चीं कर   भरमाती।।

खग कपोत भी नाच दिखाते।

पंखों  से   पंछी  नभ  जाते।।


भजन  सुनाती है पिड़कुलिया।

भोलीभाली   है  गलगलिया।।

बुलबुल, श्यामा उड़- उड़ गाते।

पंखों  से   पंछी   नभ  जाते।।


आम्र - डाल  पर बैठा  तोता।

छेद तने   को  रहता  सोता।।

नभ में  चील ,बाज  मँडराते।

पंखों  से पंछी   नभ  जाते।।


तीतर   और    बटेर   बोलते।

खेतों  में वे   निडर   डोलते।।

बोल   टिटहरी   हमें   डराते।

पंखों   से   पंछी  नभ जाते।।


गिद्ध  कहाँ  जाकर  हैं  सोए।

काँव - काँव करते  हैं  कौवे।।

बगले,क्रौंच कभी दिख पाते।

पंखों  से  पंछी  नभ   जाते।।


प्यारा  नीड़  बया  का होता।

पत्नी के सँग  रहता  सोता।।

बुनकर  पंछी  वे   कहलाते।

पंखों  से  पंछी  नभ  जाते।।


जलमुर्गी   पोखर   तटवासी।

झेंपुल   प्रातः  धूम  मचाती।।

केंकों को क्या कमतर पाते।

पंखों से  पंछी   नभ  जाते।।


💐 शुभमस्तु !


29.09.2020 ◆12.45अपराह्न।


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