सोमवार, 7 सितंबर 2020

गिरना-उठना जिंदगी [ दोहा -ग़ज़ल ]


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✍ शब्दकार ©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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गहरे    सागर  पैठकर,  मिलते  मुक्ताहार ।

जो  तट  बैठा  ऐंठकर , रोता अश्रु हजार।।


स्वांत बूँद  सीपी गिरे,अधर न हों दो बंद,

मोती बनता सीप में,नखत स्वांत उजियार।


रखे हाथ पर हाथ को,बैठा क्यों नर   मूढ़,

बहा  पसीना  देह  का,छाए विरुद -बहार ।


चलता रह निज राह पर, मंजिल आए पास,

थक जाए विश्राम कर,मगर न माने    हार।


नहीं  मलाई  रसभरी,पथरीली हर   राह,

जो जूझे जीवित रहे,वरना जीवन खार।


अपने  पैरों जो खड़ा,होती उसकी जीत,

गैरों  का मुँह जोहता, जाता नदी न पार।


पर्वत  पर  चींटी चढ़ी,ले नर उससे   सीख,

गिरना-उठना जिंदगी,'शुभम' तभी उद्धार।


💐 शुभमस्तु !


06.09.2020 ◆11.45पूर्वाह्।

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