शुक्रवार, 25 सितंबर 2020

जब मैं रात ढाई बजे तक पढ़ा [ संस्मरण ]


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लेखक © 


🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'


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            कहते हैं कि सात वर्ष में एक युग बदल जाता है। यहाँ तक कि हमारे शरीर की संरचना के समस्त अंग, उपांग ,रक्त, मांस ,मज्जा आदि सभी में पूर्ण परिवर्तन हो जाता है। यदि अतीत की साढ़े पाँच दशक पूर्व की खिड़की में आज झाँक कर देखते हैं ,तो इस तथ्य की सत्यता स्वतः प्रमाणित हो जाती है। उस समय मैं राजकीय इंटर मीडिएट कालेज आगरा में हाई स्कूल का विज्ञान वर्ग का विद्यार्थी था। नवीं कक्षा अच्छे अंकों से उत्तीर्ण करने के बाद दसवीं में अध्ययनरत था। गाँव से शहर में आकर अपने पूज्य चाचाजी प्रोफ़ेसर डॉ. सी.एल.राजपूत जी के साथ रहकर अध्ययन कर रहा था। वहीं से नित्य प्रति पैदल ही विद्यालय आता- जाता था।


               यह बात सन 1969 की है। उस समय परीक्षाएँ यथासमय हो जाती थीं औऱ मई या जून में परिणाम भी घोषित हो जाते थे। परीक्षा का समय आ चुका था। लेकिन हमारा विज्ञान का पाठ्क्रम मात्र पच्चीस प्रतिशत ही पूर्ण हो सका था। अन्य सहपाठी छात्र अपने ही विषय अध्यापकों से ट्यूशन पढ़कर पाठ्यक्रम पूरा कर ले रहे थे। मैंने कभी भी कोई ट्यूशन नहीं पढ़ा। विज्ञान का पाठ्यक्रम की स्थिति देखकर मुझे कुछ उदासी होने लगी , लेकिन मैंने साहस नहीं छोड़ा। देखते -देखते वह दिन भी आ गया कि अगले दिन विज्ञान का प्रश्नपत्र होना था।


             मैं अपने पूरे शिक्षा अध्ययन काल में कभी भी रात में नौ बजे के बाद नहीं पढ़ा। विद्यालय से घर आकर दिन में जितना भी पढ़ना, लिखना,याद करना होता था ;पढ़ लेता था। थोड़ा बहुत रात नौ बजे तक पढ़ता था। दिन में जब मैं किताब लेकर पढ़ने बैठता , मेरी पूजनीया दादी जानकी देवी देखते ही कहतीं: " लला ज्यादा मति पढ़िवे करै, ज्यादा पढ़िवे तें आँखें कमिजोर है जाति हैं।" इस पर मैं यही कहता ;" ठीक है अम्मा।"और वहाँ से हटकर अपने बँगले में या बगीचे में छिपकर पढ़ने चला जाता। मेरी अम्मा ,(दादी को मैं अम्मा ही कहता था ।) ,पिताजी या बाबा जी ने कभी न पढ़ने के लिए नहीं कहा और न रोका ही। क्योंकि मैं तो स्वतः ही किताबी कीड़ा था।अब किताबी कीड़े से क्या कहना कि पढ़ ले ,याद कर ले , स्कूल का काम कर ले।


                सुबह विज्ञान की परीक्षा थी और तैयारी थी नहीं। उस रात मैंने यह दृढ़ निश्चय कर लिया था कि जितना भी पाठ्यक्रम पूरा हुआ है ,उसमें से जो भी आएगा ,उसे पूरा और सही तरीके से करके आना है। 'आधी छोड़ सारी को धावे।आधी रहे न सारी पावे।।' वाली कहावत को मैं बख़ूबी जानता ,समझता था। इस तरह जब पढ़ने बैठा तो रात के ढाई बज गए ।और मुझे यह संतुष्टि हुई कि अब सब याद हो गया।


              सुबह परीक्षा हुई ।  प्रश्नपत्र बहुत अच्छा  हुआ और परीक्षाफल घोषित होने पर विज्ञान में 77%अंकों के साथ विशेष योग्यता भी प्राप्त हुई। इस प्रकार मेरा उस रात ढाई बजे तक पढ़ना सार्थक सिद्ध हुआ।जितना पाठ्यक्रम तैयार था ,उसे ही दुहराया । नया कुछ भी तैयार करने का कोई प्रयास नहीं किया। वह मेरे जीवन का पहला औऱ अंतिम दिन था , जब मैं रात में ढाई बजे तक पढ़ा। आज भी जब उस दिन की याद आती है ,तो बहुत अच्छा लगता है।


 💐 शुभमस्तु ! 


 25.09.2020 ◆7.30 अपराह्न।

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