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✍️ शब्दकार©
🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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स्वाभिमान से जीना सीखें,
अपनी भाषा हिंदी है।
ऊँचा भाल रखें हम अपना, भारत माँ की बिंदी है।।
माँ ने बोल दिए थे तोतल,
माँ ने दी यह भाषा है।
हिंदी की घुट्टी पीते हम,
जीवन की परिभाषा है।।
हिंदी ही संसार हमारा ,
हिंदी अपनी जिंदी है।
स्वाभिमान से जीना सीखें,
अपनी भाषा हिंदी है।।
होली हिंदी भव्य दिवाली ,
रक्षा का बंधन प्यारा।
हिंदी सावन हिंदी फ़ागुन,
पावस,वसंत मादक न्यारा।।
साड़ी ,कुर्ता , धोती हिंदी,
जैन, सिक्ख या सिंधी है।
स्वाभिमान से जीना सीखें,
अपनी भाषा हिंदी है।।
विरहा,कजरी, गीत, मल्हारें,
गाती नारीं सावन में।
होली , फ़ाग , कबीरा गाते,
ढप ,ढोलक पर फ़ागुन में।।
आल्हा, ढोला धूम मचाएँ,
निज हिंदी बहुछंदी है।
स्वाभिमान से जीना सीखें,
अपनी भाषा हिंदी है।।
गौना, ब्याह, भाँवरें , डोली,
संस्कार पावन अपने।
गाना, रोना, मंत्र हवन के ,
सोते में मीठे सपने।।
सोच-समझकर चलने वाले,
नहीं खोखले रिंदी हैं।
स्वाभिमान से जीना सीखें,
अपनी भाषा हिंदी है।।
झाँझी , टेसू , फूलतरैया,
कार्तिक , माघी मेला है।
संस्कार की सीख बड़ों की,
बचपन से ही खेला है।।
दोहा, गीत, सवैया लिखते,
'शुभम' सीखता हिंदी है।
स्वाभिमान से जीना सीखें,
अपनी भाषा हिंदी है।।
💐 शुभमस्तु !
07.09.2020 ◆1.00अपराह्न।
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