गुरुवार, 24 सितंबर 2020

भेड़ भी! अंधी भी! [ कुंडलिया ]


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✍️ शब्दकार©  

🌾 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                     -1-

अंधी  जनता के लिए,काना राजा   ठीक।

वाह-वाह करने लगी, आई उसको छींक।।

आई उसको छींक,एक गमछा ले   आया।

तुरत दौड़कर एक, एम्बुलेंसहि  बुलवाया।।

'शुभम'पतन का काल,न कोई कारज बनता।

एक नयन से हीन,उधर सब अंधी   जनता।।


                     -2-

अंधी  जनता  भेड़ है, या मूढ़ों की  भीड़।

काना राजा जो कहे,बस जाए उस नीड़।।

बस जाए  उस नीड़, बहुत ही आज्ञाकारी।

पूरा    है   विश्वास  , नहीं  कोई    लाचारी।।

'शुभम'काटता पेट,नहीं सिर कोई  धुनता।

मन में है खुशहाल,देश की अंधी  जनता।।


                     -3-

अंधी   भेड़ों के   लिए, नहीं सोचना  ठीक।

सोचेगा राजा सही,चलें पकड़ हम   लीक।।

चलें पकड़ हम लीक, कूप में भले  धकेले।

ग्रीवा  भी  दे काट, भले प्राणों को  ले   ले।।

'शुभम' न शेष विवेक,मूढ़ मानव अनुबंधी।

भले  उतारे  खाल, देह ,मन, धी से अंधी।।


                     -4-

अंधी जिनकी आँख हैं, चर्म-चक्षु पाषाण।

बिना रज्जु  के  वे बँधे, दे  देंगे वे    प्राण।।

दे  देंगे  वे  प्राण, पालतू  श्वान जान    लें।

बँधे तंत्र  की  डोर, भले पशु दीन मान लें।।

'शुभम' मृत्तिका  ढेर, मगर सारे   बहुधंधी।

बैठे  मौन  सुशांत, आँख  हैं दोनों    अंधी।।


                     -5-

अंधी  भेड़ें  भैंकती, रेवड़ में दिन -  रात।

चाहे  ऊन  उतार  लो,  चाहे मारो  लात।।

चाहे   मारो  लात, भुसी तन में  भरवाओ।

करें  वही सब काम,घिनौने यदि करवाओ।।

'शुभम' हमें स्वीकार,तुम्हारी बदबू   गंधी।

करना क्यों इनकार ,पालिता हैं  हम  अंधी। 


💐 शुभमस्तु !


23सितंबर2020◇7.00अप.

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