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✍️ शब्दकार ©
🐟 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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शुरू हो गया फ़िर वही सिलसिला है।
न दिल आदमी का आदमी से मिला है।।
मज़ा आ रहा है सताने में उसको,
चूस जाने को इंसां हुआ पिलपिला है।
कभी मुफ़्त में प्यार मिलता नहीं है,
जां भी लुटा दो पहाड़ी किला है ।
उसे भूख सारी पैसे की ख़ातिर,
भूखा औ' नंगा हर इंसाँ मिला है।
किसी का रँगा दिल देखा न पाया,
तन को रँगाया हुआ झिलमिला है।
छुड़ाते हैं धन लगवा के लँगोटी,
मुझे दान कर दे तो तेरा भला है।
'शुभम' तू सुधर जा तो कल्याण होगा,
कहाँ तू जमाने के पथ पर चला है!
💐शुभमस्तु !
17.09.2020◆2.00अपराह्न
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