शनिवार, 12 सितंबर 2020

आत्मबोध [अतुकान्तिका]


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✍️ शब्दकार©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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इस देह से ही

सदा संदेह है,

यह देह ही तो

आत्मा का गेह है,

किन्तु मानव को

देह से ही नेह है।


आत्मा का निवास

यह पंच भौतिक देह,

उसी आत्मा का

अभिज्ञान है

आत्मबोध,

मैं कौन हूँ?

मैं क्यों हूँ?

मैं क्या हूँ?

किसलिए यहाँ हूँ?


' सो$हं '

जो वह  'परमात्मा' है,

वही तो मैं हूँ,

वही आत्मतत्त्व मैं,

परम आत्मा का अंश,

अंशी वह 

अजर,अमर, शाश्वत।


विराट विश्व में

मेरे आगमन का

लक्ष्य क्या है?

अभिज्ञान उसका,

आत्मबोध का

रहस्यमय शफ़ा है।


कितना सूक्ष्म

और नगण्य मैं,

किन्तु अहंकार के

हस्ती ने

बना दिया है

मुझे भी 

विशाल हाथी,

जो आत्मा को क्या?

अपनी देह को भी

देख और जान नहीं

पाता कभी!


सब अकेले हैं,

कौन किसका?

कौन किसके साथ?

कौन किसका नाथ?

सबका पृथक पाथ?

कहीं कोई वर्ण ,

कोई जात,

काले गोरे रंग,

सवर्ण अवर्ण

ऊँच -नीच छुआछूत,

नहीं समझा

मानुष जीव

पक्षी ,पशु,

जल ,थल ,नभचर,

छोटा बड़े का आहार,

कैसा विचित्र 

आत्माओं का 

अंधी आत्माओं का

संसार!


अहंकार का पर्दा,

विनाश का गर्दा,

जीव बना रहा मुर्दा,

कोई रावण

कोई कंस,

ध्वंश ही ध्वंश,

रँग लिए वसन,

मन वही

बस एक तन,

दीखते उसको

ये स्वजन,

कोई परिजन,

और पराया जन,

पर नहीं दिखा

अपना स्वत्त्व,

परम तत्त्व।


कैसे हो 

औऱ क्यों?

आत्मबोध?

मकड़ी के जाले में,

टंगा हुआ उलटा, 

शीर्षासन करता,

अपने ही अहं में चूर,

फिर हो भी क्यों

कैसा आत्मबोध !


सुअर ,गर्दभ ,श्वान!

वैसा ही इंसान,

क्या मात्र

 देह ही पहचान!

रहा बस 

गोरी त्वचा का ज्ञान।


नहीं पहचाना

मैं कौन हूँ,

कहाँ से आया ?

कहाँ जाना?

क्या यों ही

चलते चले जाना?

क्या करना?

क्या यों ही

जीना मरना ,

फिर कैसा आत्मबोध!


करना ही है

निरन्तर आत्मशोध

यों ही नहीं

बनता है कोई बुद्ध,

जो कर सके

सत्यं,शिवं,

सुंदरम,'शुभम' आत्मबोध।


💐शुभमस्तु !


11.09.2020◆2.00अपराह्न।


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